मोहित से मेरी मुलाकात कोई 3 साल पहले हुई थी। मैं उन दिनों अपना एक छोटा सा पेंटिंग स्कूल चलाती थी। मोहित और उसका परिवार हमारे पड़ोस मेंं हाल ही में रहने के लिए आया था।मोहित की मां से मेरा परिचय बाज़ार जाते समय हुआ था। उन्होंने मुझसे पूछा था कि क्या मैं उनके बेटे को भी पेंटिंग सिखाऊंगी? मेरे हां कहने पर वो अगले ही दिन उसे लेकर आ गई थीं।कोई 12 साल का प्यारा सा बच्चा था मोहित। भोला सा चेहरा, ऊपर का एक दांत थोड़ा सा टूटा हुआ और दूध धुली प्यारी सी हंसी। इस बच्चे में ना जाने ऐसा क्या था कि उसने मेरा मन मोह लिया।
फ़िर वो नियमित रूप से आने लगा, दो वर्ष के अंदर ही अंदर उसने चित्रकला के तमाम गुर सीख लिए। जलरंगों का प्रयोग हो या तैलचित्र बनाने होंं हर काम वो बड़ी ही सफ़ाई से करता। उसके बनाए चित्र इतने जीवंत होते कि पूछिए मत। कभी कभी तो मुझे हैरानी होती कि मैं उसे सिखा रही हूं या वो मुझे? मुुझे मोहित पर बड़ा गर्व होता। वैसे तो मुझे अपने पास आने वाला हर बच्चा प्रिय था पर मोहित से मुझे ख़ास लगाव हो गया था।
मैं अक्सर उसे कहती कि देखना मोहित तुम एक दिन बहुत बड़े चित्रकार बनोगे और मैं गर्व से लोगों से कहूंगी कि तुम मेरे शिष्य रह चुके हो। जवाब में वो अपनी दूध धुली हंसी बिखेर देता। इसी तरह कोई 3 साल बीत गए। मोहित अब दसवीं में चला गया था। उसका आना ज़ारी रहा पर मैं देखती थी कि ख़ुशमिजाज सा मोहित इन दिनों परेशान नज़र आता।
एक दिन मैंने उससे पूछ ही लिया कि क्या बात है? उसने बताया कि पापा उसे आइ ए एस बनाना चाहते हैं जबकि वो बड़ा होकर चित्रकार बनना चाहता है। मोहित के पिता एक सरकारी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे और हर भारतीय मां-बाप की तरह उनकी भी इच्छा थी कि उनका बेटा भी आइ ए एस बनें ।अक्सर मोहित के घर से ज़ोर ज़ोर से डांटने की आवाज़ें आतीं। अब वो मुझे गली क्रिकेट खेलता भी नज़र नहीं आता। मुझे अपने प्यारे से शिष्य की, जिसे मैं अपना मानस पुत्र मान बैठी थी,की चिंता सताने लगी। दसवीं की परीक्षाएं ख़त्म हो गई थीं और पोस्ट एग्जाम छुट्टियां चल रहीं थी।ज़्यादातर बच्चेे छुट्टियां मनाने चले गए थे पर मोहित का आना जारी रहा। पूछने पर बताया कि मार्च का महीना होने के कारण पिताजी को छुट्टियां नहीं मिलीं।
उन्हीं दिनों उसने एक तस्वीर बनाई थी, झील के किनारे बैठे लड़के की। चित्र में लड़के की पीठ दिखाई दे रही थी, लड़के का अक्स झील के पानी में दिखाई दे रहा था। एक उदास लड़के का अक्स। तस्वीर ऐसी थी जैसे अब बोल पड़ेगी । मैंने मोहित से पूछा कि ये लड़का इतना उदास क्यों है? जवाब में फ़िर वही दूध धुली हंसी, पर इस बार इस हंसी में वो चमक नहीं थी, बनावटी हो जैसे।
मई का महीना था और बच्चों की गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं। मेरा 400 वर्ग फुट का छोटा सा स्टूडियो वीरान पड़ा रहता आजकल। मुझे शायद बच्चों के चहल -पहल की आदत पड़ गई थी इसलिए मेरा भी घर पर मन नहीं लगता।
दसवीं के रिजल्ट आने वाले थे। मैं भी अपने पास आने वाले छात्रों के रिजल्ट की प्रतीक्षा में थी।उस दिन मैं पास की डेयरी से दूध लेकर लौट रही थी कि मोहित के घर के बाहर भीड़ इकट्ठी देखी। उत्सुकतावश मैं भी उधर बढ़ गई। सामने जो दृश्य था उसने मेरा दिमाग सुन्न कर दिया।सामने मोहित की लाश पड़ी थी। लोगोंं ने बताया कि दसवीं में फ़ेल होने के कारण उसने आत्महत्या कर ली है। मेरे हाथ से दूध का बरतन गिर पड़ा। मैंने खुद को संभालने के लिए पास लगे खंभे का सहारा लिया था। अपने माता-पिता की महत्वाकांक्षाओं का बोझ मोहित के नाज़ुक कंधे सहन नहीं कर पाए थे और एक भावी चित्रकार असमय मौत के मुंह में समा गया था।
इस घटना ने मेरे मन पर इतना बुरा प्रभाव डाला कि मैंने पेंटिंग स्कूल बंद कर दिया। मैंने मोहित की इस्तेमाल की हुई कूचियां, रंग सभी संभालकर रख दिए। कैनवास पर टंगी हुई मोहित की बनाई हुई तस्वीर आज तक नहीं उतारी मैंने। मुझे लगता है कि मैं भी उसकी आत्महत्या में बराबर की गुनहगार हूं। कम से कम एक बार मुझे उसके माता पिता से बात कर लेनी चाहिए थी। उन्हें बताना चाहिए था कि वो भावी आइ ए एस नहीं, एक विलक्षण भावी चित्रकार है।जानती हूं कि जाने वाले कभी लौटकर नहीं आते पर दिल से बस यही आह उठती है कि- "लौट आओ मोहित, एक बार फ़िर मेरे चित्रों को सजीव कर दो। एक बार फ़िर मेरे स्टूडियो को अपने रंगों से सजा दो।"
नोट: यह एक काल्पनिक कहानी है पर कथानक वास्तविक है। मोहित की तरह न जाने कितने छात्र प्रतिवर्ष ख़राब अंकों के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था भी अंक आधारित है और हमारी सोच भी वैसी ही हो गई है पर हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बच्चे 'फ़ैक्ट्री मेड' नहीं होते। हर किसी की अपनी खूबियां होती हैं। यदि आपके आसपास भी कोई ऐसा मोहित हो तो उसे अवसाद में न जाने दें। उसे उसकी रूचियां निखारने के मौके दें क्योंकि महज एक परीक्षा में प्राप्त किए गए अंक किसी की योग्यता नहीं निर्धारित कर सकते।
©अर्चना आनंद भारती
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
मार्मिक है बहुत, सही बात है, हमें अगर अंदेशा हो तो बात करनी चाहिए..! ये सब झझोरता है अक्सर..!
बहुत बहुत धन्यवाद सखी इतनी सारगर्भित समीक्षा के लिए 💞💞
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