दोबारा

माँ बेटी के सुंदर रिश्ते की मनभावन कहानी

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 31 May, 2020 | 1 min read

" माँ कितनी अजीब हो गई है आजकल।बिल्कुल बच्चों की तरह ज़िद्दी,हर समय साथ रहने, आने की ज़िद, मेरे साथ खाने की ज़िद... वो समझती क्यों नहीं कि मैं नौकरीपेशा हूँ,गृहिणी नहीं।

एक तो ऑफिस के तमाम पचड़े,ऊपर से इनके नखरे, नौकरीपेशा स्त्रियों को दोहरी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है न?वो तो अच्छा है कि मैं नौकरीपेशा हूँ वरना शादीशुदा बेटी के घर में रहना इतना आसान नहीं होता।माँ अगर अपने आत्मसम्मान के साथ यहाँ रह रही हैं तो इसलिए कि मैं कमाती हूँ वरना विधवा सास भला किस दामाद को सुहाती है?वो भी जिनके पास कोई चल अचल संपत्ति नहीं?कोई कुछ भी कह ले,इस पितृसत्तात्मक समाज का यही सच है।

वो तो ठीक है कि नरेन मेरे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते वरना मैं इतना सबकुछ कैसे संभाल पाती?

पर नीता जीजी तो कुछ समझना ही नहीं चाहतीं,उन्हें लगता है कि मैं माँ के साथ आजकल सही व्यवहार नहीं करती।अरे इतनी ही फ़िक्र है माँ की तो उन्हें अपने साथ क्यों नहीं ले जातीं?आज जीजी आई हैं छुट्टियां मनाने, अब बस उपदेश दे देकर मेरा सर खा जाएंगी।

मैं न जाने क्या क्या सोचे जा रही थी कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।मैंने आगे बढ़कर दरवाजा खोलना चाहा कि जीजी दाखिल हो चुकी थीं।

" नरेन अभी तक ऑफिस से नहीं लौटे नीला?"जीजी ने पूछा।

" नहीं, आज उनकी ज़रूरी मीटिंग है, देर से लौटेंगे " मैंने बेसाख़्ता कह दिया।

जीजी आराम से मेरे कमरे में बैठ गईं।थोड़ी देर चुपचाप मेरे कमरे का मुआयना करती रहीं. हर चीज़ व्यवस्थित ढंग से सजी देखकर जीजी ने फिर मुझे कुरेदा।

" इतनी व्यस्तता के बावजूद तू इतना समय निकाल लेती है नीरू?"

" नहीं दीदी, मैं कहाँ?" मैं हड़बड़ा सी गई।

" तो "

" वो माँ कर देती है न मेरे जाने के बाद सब "

" माँ कितना ख़्याल रखती है न?" जीजी ने कहा।जाने क्यों मुझे जीजी की बातों से ईर्ष्या की बू आई।

" वो घर पर ही रहती हैं तो..." मैंने अस्फुट स्वर में कहा।

" और तू?" जीजी ने पूछा।

" मैं, मैं क्या?" मैंने हकलाए से स्वर में पूछा था।

" तू माँ का ख़्याल रखती है न?" जीजी ने पूछा था।मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना जीजी बोलती चली गई थीं।

" जानती है नीरू,तू घर में सबसे छोटी थी।दादी को न पोते की आस थी पर तू आ गई थी।इसलिए उन्हें कोई ख़ास खुशी नहीं हुई।पर माँ - पापा ने किसी को भी तुम्हें कमतर आंकने का अवसर नहीं दिया।हर कोशिश की तुम्हें एक कामयाब इंसान बनाने की।"

"आप,आप कहना क्या चाहती हैं दी?" मुझे लगा जीजी गृहिणी होने की कुंठा निकाल रही हैं।

" तू गलत मत समझ नीरू, मैंने माँ को देखा है,कितनी अकेली हो गई हैं पापा के जाने के बाद।"

" मैं माँ की हर ज़रूरत का ख़्याल रखती हूँ।" मैंने जैसे अपने आप को तसल्ली दी थी।

"जानती हूँ कि तू उन्हें ज़रूरत का हर सामान लाकर देती है पर समय?समय देती है क्या तू उन्हें नीरू?"

बस बात के इसी सूत्र पर मुझे न जाने क्या हुआ था कि मैं एकदम दी पर भड़क उठी थी।

"आपको क्या लगता है मैं माँ का ख़्याल नहीं रखती?आप जानती भी हो कितनी ज़िम्मेदारियाँ हैं मुझ पर?और ऊपर से आप मुझे उपदेश दे रही हो?हाँ,आप जॉब नहीं करतीं न?"

जीजी हतप्रभ हो उठी थीं।कमरे में एक शून्यता व्याप्त हो गई थी।जीजी उठकर चली गई थीं।अगले ही दिन दी तड़के सुबह जाने की ज़िद करने लगीं।मैंने भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की।

जीजी तो चली गईं पर उनकी बातें गोल - गोल चक्र की तरह मेरे मस्तिष्क में घूमने लगीं।ऑफिस में भी आज मन नहीं लगा और जल्दी ही घर लौट आई।दरवाजा भिड़ा हुआ था ,मैं अंदर चली आई।जाने क्यों आज मेरे कदम सीधे माँ के कमरे की ओर मुड़ गए।

मैंने धीरे से झांका, माँ अपने संदूक पर थोड़ा झुकी बैठी थीं।वही संदूक जो माँ अपने साथ एकमात्र संपत्ति के तौर पर लाई थीं।माँ के हाथ में कुछ था...अरे, ये तो वही चांदी की कटोरी और चम्मच थे जिससे माँ मुझे बचपन में खिलाया करती थीं और क्रोशिए से बुनी मेरी फ्रॉक...माँ हाथ में लिए बुत बनी बैठी थीं।

जाने मेरी आँखों में बचपन से लेकर अबतक के कितने दृश्य तैर गए।मुझे स्कूल के लिए तैयार करती हुई माँ,मेरी कामयाबी पर फूले न समाती माँ और पापा के देहांत पर बुत बनी माँ...आज,आज माँ की आँखों में वही शून्यता व्याप्त थी।

मैं स्वयं को और नहीं रोक पाई, दौड़कर माँ के गले जा लगी।माँ थोड़ा ठिठकीं,फिर उन्होंने भी मुझे अपने आलिंगन में भींच लिया।उनके बहते हुए आँसुओं ने मेरी गुस्ताख़ियाँ माफ़ कर दी थीं।और आज सालों बाद मुझे मेरी माँ मिल गई थीं, दोबारा।

समाप्त

मौलिक एवं अप्रकाशित

अर्चना आनंद भारती

आसनसोल, पश्चिम बंगाल


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ARCHANA ANAND

archana2jhs

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    सुंदर रचना

  • ARCHANA ANAND · 4 years ago last edited 4 years ago

    हार्दिक आभार आपका

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    Bahut accha

  • ARCHANA ANAND · 4 years ago last edited 4 years ago

    धन्यवाद मैम

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