वो एक अच्छी लड़की थी।अच्छी मतलब बहुत अच्छी,प्यारी सी,घुंघराले बालों,सपनीली आँखों वाली छः साल की लड़की,बिट्टो नाम था उसका।परियों जैसी दिखती,परियों की बातें करती।पगली जानती नहीं थी कि परियाँ नहीं होतीं।परीलोक नहीं होते।बस अम्मा के कहे को मानती आई थी।
गली में किसी तितली सी उड़ती,चिड़िया सी चहकती खेल रही थी उस दिन कि पड़ोस के भैया ने टॉफी देने के लिए बुलाया।पास गई कि उसकी फ्रॉक खींच ली पाजी ने और वह नासमझ चिल्ला-चिल्लाकर रो पड़ी थी।छत पर कपड़े सुखाती अम्मा ने देख लिया यह सब और उसे पकड़कर घर ले आई।उस दिन उस मासूम ने जाना था कि बाहर शैतान रहते हैं।
"आज से बाहर नहीं जाएगी तू,अब से घर पर खेल",और वो अबोध घर की चारदीवारी में क़ैद इसे ही अपनी पूरी दुनिया मानने लगी।बस स्कूल आने-जाने को निकलती थी।अब उसकी दुनिया किताबों में बसती थी।
अब वो बारह साल की हो चुकी थी।सातवीं में पढ़ती थी।फूलों वाली घेरेदार फ्रॉकें बड़ी पसंद थीं उसे।खूब लहराती घूम-घूमकर।तभी नवीं क्लास के एक छात्र ने छेड़ा था उसे जब वो स्कूल से घर लौट रही थी।अम्मा के कानों में भनक लग गई थी और उसी दिन से उसकी सभी घेरदार फ्रॉकें उठाकर घर के कबाड़खाने मेंं रख दी गईं।सलवार-कुरता अनिवार्य कर दिया गया उसके लिए।
" पर क्यों अम्मा?मैं क्यों नहीं पहन सकती फ्रॉक?मेरी गलती क्या है? पहली बार एक क्षीण सी आपत्ति दर्ज की थी उसने।"अच्छी लड़कियाँ सवाल नहीं करतीं" और उसने हामी भर दी थी।अच्छी लड़की जो थी।
अब वो एक 18 साल की लड़की थी।कॉलेज आती-जाती थी भैया के संरक्षण में।उस दिन पहली बार सहेलियों के साथ गई थी जब एक लड़के ने पत्थर में लपेट उसे चिट्ठी फेंकी थी।सहेलियों ने बता दिया था अम्मा को और इस बार बाबूजी ने घोषणा की थी कि अब बिट्टो कॉलेज नहीं जाएगी।
"पर क्यों?" इस बार उसने विरोध की पुरजोर कोशिश की थी।"भैया तो जाता है कॉलेज"उसने पूछा था और तड़ाक की आवाज़ के साथ एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गालों पर पड़ा था।फ़िर उसकी किताबें रद्दी की टोकरी में डाल दी गई थीं।अब तक वो भी समझ गई थी कि अच्छी लड़कियां सवाल नहीं करतीं।
आनन-फानन में उसकी शादी तय कर दी गई थी एक बड़े रईस घराने में।विदाई के समय अम्मा ने बताया था कि अब वो अपने असली घर जा रही है।अपने इस असली नए घर के सदस्यों का रवैया भी उसे कुछ ख़ास सकारात्मक नहीं लगा था।नई अम्मा भी हद से ज़्यादा कड़क और अनुशासनप्रिय थी।जब ताने और व्यंग्य उसकी आत्मा को छलनी करने लगे तब वो लड़ पड़ी थी अपने वजूद के लिए,आख़िर अम्मा ने कहा था कि ये उसका असली घर है।"तुम्हें क्या तुम्हारी माँ ने कुछ नहीं सिखाया?अच्छी बहू-बेटियों के क्या यही लक्षण हैं?" और वो खामोश हो गई थी।वो अच्छी लड़की अब एक अच्छी औरत बन चुकी थी।
फ़िर वो दिन आया जब उसे असीम वेदना से गुजरना पड़ा,अब वो अच्छी औरत एक अच्छी माँ जो बन गई थी।अब तक तो उसने भी समझ लिया था कि औरत और दर्द का ज़रूर कोई ख़ास रिश्ता है।
अब सालों गुज़र चुके हैं और विकास के इस क्रम में उस अच्छी औरत के भीतर की वो अल्हड़, चंचल लड़की मर चुकी है।अब भी कभी-कभी ये 'अच्छी औरत' उस 'अल्हड़ लड़की'की कब्र पर जाकर चार आँँसुओं के फूल चढ़ा आती है।हाँ,ये फूल भी अब मुरझाने लगे हैं।
©अर्चना आनंद भारती
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