मेरी फुफेरी बहन की सगाई थी और हम सभी भाई बहन बड़े उत्साहित थे।हम बहनें खूब सज - धज कर तैयार हुई थीं।मेरे फुफेरे भैया ने समारोह में आए मेहमानों से हमें मिलवाया।आगंतुकों में भैया का एक दोस्त भी था - नरेन।भैया ने उससे भी मेरा परिचय करवाया।मैं एक औपचारिक 'हैलो' कहकर आगे बढ़ गई लेकिन मैंने पूरे समारोह में महसूस किया कि एक जोड़ी आँखें मेरा पीछा कर रही हैं।मुझे पहले तो लगा कि शायद ये मेरा भ्रम है लेकिन जब नज़रें उठाईं तो नरेन को मुझे घूरता पाया।मुझे पहले तो लगा कि भैया से कहूँ लेकिन फिर बवाल होने के डर से चुप रह गई।दीदी की सगाई हो गई और बात आई - गई हो गई।सगाई के तीन महीनों बाद शादी थी।हमसब उस गेस्ट हाउस में पहुंचे जहाँ पर समारोह रखा गया था।पर मेरी हैरानी की सीमा न रही जब उसी लड़के को वहाँ बारातियों का स्वागत करता पाया।अब तो मुझे काटो तो खून नहीं।मैं बड़ा असहज महसूस करने लगी।ख़ैर, रस्में शुरू हुईं और हमसब उनमें मशगूल हो गए।मुझे दीदी की पार्लर वाली को दीदी के कमरे तक पहुँचाने का जिम्मा सौंपा गया।दीदी का कमरा ऊपर के फ़्लोर पर था।मैं पार्लर वाली को दीदी के कमरे में छोड़कर नीचे आने लगी।तभी मैंने कॉरीडोर में उसी लड़के को खड़ा देखा।मेरी ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे अटक गई।मैं तेजी से वहाँ से आने लगी कि तभी उस लड़के ने रोक लिया।'अनु ' उसने पुकारा।इसे तो मेरे घर का नाम भी मालूम है।मैंने ऊपर से सहज बनते हुए सोचा।'क्या है? ' ' मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो।' उसने बेसाख़्ता कह दिया।मेरे कान लाल हो गए।मैंने अपनी उखड़ती साँसों पर नियंत्रण करते हुए ज़रा कठोर अंदाज़ में कहा कि ' मैं तुम्हें नहीं जानती।ज़्यादा बकवास की तो मैं भैया को बुला लूंगी।' और हड़बड़ाते हुए भागी।फिर पूरे समारोह में कोई अप्रिय बात नहीं हुई और शादी निर्विघ्न संपन्न हो गई।सालों बाद जब मेरी शादी हो गई तब भैया ने राज खोला कि वो लड़का मुझे पसंद करता था।सत्रह साल की वो उम्र इन अनछुए जज़्बातों के लिए ज़रा कच्ची थी लेकिन आज मैं स्वीकार करती हूँ कि ' दिल उस रोज़ धड़का तो था।'
मौलिक एवं अप्रकाशित
अर्चना आनंद भारती
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