उर्मिला का वसंत

सीता देवी बनीं, पूजी गईं लेकिन उनकी बहन उर्मिला ने भी तो चौदह वर्षों का वनवास सहा।उन्हें क्यों वह स्थान नहीं मिला और पीड़ा हमेशा स्त्रियों के ही हिस्से क्यों आती है?इसी चलन पर प्रश्नचिह्न लगाती हुई रचना

Originally published in hi
❤️ 1
💬 0
👁 747
ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 27 Jul, 2020 | 1 min read
#Social issues





हाय!यह कैसा है वसंत?

कैसा है यह मधुमास सखी

प्रिय गए हैं वनवास सखी

खोए हैं मेरे दिग् दिगंत

हाय!यह कैसा है वसंत?


वन वल्लरियाँ खिल रहीं सुघर

कोकिल,पीहू गा रहे मधुर

किन्तु प्रिय, मेरे पतझड़ का

दिखता है न कोई आदि-अंत

हाय!यह कैसा है वसंत?


पीली पीली सरसों फूली

क्षण एक न मैं प्रिय को भूली

किन्तु मुझको प्रिय भूल गए

क्या होते हैं ऐसे निसंग?

हाय!यह कैसा है वसंत?


भ्रातृ धर्म का मान रखा

खुश हूँ,प्रिय ने सम्मान रखा

किन्तु, क्या पत्नी का भी हाय

किंचित भी उन्होंने मान रखा?

लंबी है मेरी कालरात्रि

चहुंओर निशा,न कोई अंत

हाय!यह कैसा है वसंत?


इसको मेरी निद्रा न कहो

इक नवोढ़ा का दुर्भाग्य कहो

या दुर्भाग्य हर स्त्री का

जिसको न मिला सम्मान उचित

निज उर से कर पालित-पोषित

जो सहती सारे पुरुष दंश 

हाय!यह उर्मिला का वसंत!

मौलिक एवंं स्वरचित

©अर्चना आनंद भारती


1 likes

Support ARCHANA ANAND

Please login to support the author.

Published By

ARCHANA ANAND

archana2jhs

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.