ख़्वाब

मासूम बच्चियों के मन की थाह लेती भावनात्मक कविता

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ARCHANA ANAND
ARCHANA ANAND 15 Feb, 2021 | 1 min read
#1000poems

इक मासूम सी ग्रामीण बच्ची

और पीठ पर लदा किताबों का बस्ता 

आँखों में झिलमिलाते बस्ता भर के ख़्वाब

ख़्वाब ऊँची तालीम के

ख़्वाब भैया की तरह फुटबॉल मैच खेलने के

ख़्वाब पापा की तरह दफ़्तर जाने के

ऐसे ही अनगिनत झिलमिलाते से ख़्वाब

अम्मा क्यों चुपके से रोती है?

क्यों तकिए को आँखों से भिगोती है?

क्यों विरोध नहीं करती दादी के तानों का?

आख़िर क्यों अम्मा के हिस्से आख़िरी थाली ही आती है?

ऐसे अनगिनत सवाल भी,जिसके जवाब नहीं होते

और एकदिन वो बच्ची बड़ी हो गई

सवाल और सपने भी अचानक से कहीं खो गए

जब उसने जाना कि बेटी होना भी एक जुर्म है

और बेटी को दफ़न करने पड़ते हैं ऐसे सवाल

और ऐसे सपने भी इस जुर्म के एवज में

आज वो मासूम सी बच्ची एक माँ है एक गुड़िया की

और पुनः झिलमिला रहे हैं उसकी आँखों में

कुछ खू्बसूरत से सपने

पर अब वो पूरे न हो पाने के पूर्वाग्रह से मुक्त हैं

क्योंकि अब उन्हें एक माँ की ताक़त हासिल है!

©अर्चना आनंद भारती



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