कहते हैं उसे पेट में मारने की
कोशिश की थी माई ने
पर वह ज़िन्दा बच निकली
क्योंकि मुनिया अक्खज है
उसे दूध,दही, फल,मेवे की
ज़रूरत नहीं पड़ती
थोड़ा सा सत्तू,महुए के साथ
फाँककर डोलती रहती है
अपनी मुट्ठीभर कमर पर साथ
छुटके भैया को लिए दिए
क्योंकि मुनिया अक्खज है
आज माई ने बहुत मारा है उसे
छुटके का दूध पी जाने के जुर्म में
नीले निशान उसे चिढ़ा रहे हैं
पर वह रोती नहीं
क्योंकि मुनिया अक्खज है
आज सत्रह बरस की मुनिया ब्याही गई है
अठारह साल बड़े दुहाजू से
बिन गाजे - बाजे के
क्योंकि मुनिया अक्खज है
आज फिर नीले निशान हैं
उसकी अठारह साल की पीठ पर
लेकिन वह रोती नहीं
क्योंकि मुनिया पेट से है
आज मुनिया अस्पताल में है
माई देखने को आई है
आज गरियाती नहीं माई
कमज़ोर पड़ती मुनिया की आँखें
माई को देखकर भर आई हैं
क्षीण पड़ती जा रही है
उसकी आँखों की ज्योति
लछमिया,लछमिया कहकर
रो रही मुनिया की माई
पर ये सब सुनने को
अब मुनिया नहीं है
वह जा चुकी है एक और
अक्खज को जन्म देकर
मुनिया सभ्यता के पृष्ठ पर
बड़ा सा प्रश्नचिह्न है !
अक्खज : बिहार का एक स्थानीय शब्द जिसका अर्थ है अनचाहे पौधे या खरपतवार
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