काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु
जब तक स्वतंत्रता के लाभान्वित केवल समर्थ हैं,
तब तक स्वतंत्रता के सारे नारे बिल्कुल व्यर्थ हैं,
जब तक देश की सत्ता पूंंजीपतियों की चेरी है,
जब तक सरकार सुन न पाती जनता की रणभेरी है,
जब तक पीठासीन अधिकारी सत्ता मद में चूर हैं,
जब तक बेटियांं अंंतहीन पीड़ा सहने को मजबूर हैं,
जब तक गरीब,लाचार,विवश फुटपाथों पर सोते हैं,
जब तक किसान अपने घर में खून के आंंसू रोते हैं,
जब तक धरती फटती रहती अबलाओं की चीत्कारों से,
जब तक गूंजता रहता गगन भारत विरोधी नारों से,
जब तक सीमा पर शूरवीर सैनिक मारे जाते हैं,
जब तक लाचार बच्चियों के वस्त्र उतारे जाते हैं,
जब तक मां भारती की आत्मा ऐसी परतंत्र है,
कैसे मान लूंं मैं भला कि देश अपना स्वतंत्र है?
मौलिक एवं स्वरचित
©अर्चना आनंद भारती
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुंदर रचना
Very well expressed
धन्यवाद आपका @Kumar Sandeep
धन्यवाद प्रिय सखी @Sonnu Lamba
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