राजनीतिक संंबंध
भारत और चीन के राजनैतिक संबंधों की शुरुआत 1 अप्रैल, 1950 को हुई थी और चीन में दूतावास बनाने वाला भारत पहला गैर - वामपंथी देश बना।यहीं सर्वप्रथम एक सुप्रसिद्ध नारा विकसित हुआ - " हिन्दी चीनी भाई - भाई "
हजारों वर्षों तक तिब्बत ने भारत और चीन के बीच विभाजन रेखा का काम किया लेकिन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और उसके बाद दोनों देश सीमाएं साझा करने लगे।
1954 में जवाहरलाल नेहरू चीन की यात्रा पर जाने वाले पहले गैर साम्यवादी देश के प्रमुख बने और दोनों देशों ने पंचशील सिद्धांतों पर साझा हस्ताक्षर किए।लेकिन 1962 में चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा और भारत पर हमला कर दिया।इस युद्ध ने दोनों देशों के संंबंधों में दरार पैदा कर दी।
हालांकि अगस्त 1976 में भारत और चीन ने दुबारा राजनीतिक संंबंध शुरू किए पर खींचतान जारी रही।संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध भी चीन ने ही किया था जिसके कारण आजतक भारत संयुक्त राष्ट्र का अस्थायी सदस्य है।
2017 में चीनी राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से अनौपचारिक तौर पर मिले एवंं ब्रिक्स सम्मेलन में दुबारा दोनों राष्ट्रप्रमुखों की अनौपचारिक भेंट हुई।पर चीन के पैंतरे हमेशा भारत को चौंकाते रहे।
व्यापारिक संंबंध
बीसवीं सदी तक चीन पर भारत की निर्भरता कम थी लेकिन 21वीं सदी की शुरुआत में चीनी व्यापार 3 बिलियन से बढ़कर 100 बिलियन डॉलर यानि कि लगभग 32 गुना ज्यादा हो गया।पिछले दस सालों में चीन से भारतीय व्यापार में लगभग 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो कि अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक है।इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए हम पूरी तरह चीन पर निर्भर हैं लेकिन भारत का चीन में निवेश काफी कम है।
वर्तमान संंबंध
भारत हालांकि चीन के लिए एक बहुत बड़ा बाजार रहा है लेकिन इससे चीन के शत्रुतापूर्ण रवैये में कोई कमी नहीं आई है।पाकिस्तान को आतंकी संरक्षण ,समय समय पर भारतीय सीमा में घुसपैठ, अरुणाचल प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र पर अवैध कब्जा आदि बताते हैं कि चीन कभी हमारा मित्र देश नहीं हो सकता।
2017 में हुए डोकलाम गतिरोध ने संंबंध और भी तल्ख किए हैं।पैंगोंग विवाद और सबसे ताजा घटनाओं में गलवान झड़प जिसमें हमारे बीस सैनिक शहीद हो गए, ने ये सिद्ध कर दिया है कि चीन पर हमें कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए। लेकिन चीन की ताकत कम करने के लिए हमें सर्वप्रथम चीनी व्यापार को कम करना पड़ेगा।चीनी वस्तुओं पर निर्भरता कम करनी पड़ेगी और स्वदेशी वस्तुओं और उद्योगों को प्रोत्साहन देना पड़ेगा।राष्ट्रहित सर्वोपरि है और इसके लिए सरकार और जनता दोनों की सक्रिय भागीदारी जरूरी है।
वर्ष 2020 में भारत - चीन संंबंधों की 70वीं वर्षगाँठ है और संंबंध तभी सुरक्षित रहते हैं जब दोनों पक्ष बराबर रूप से मजबूत हों। उम्मीद है कि भारत इस वर्ष दुबारा चीन से अपने संंबंधों पर मनन करेगा और चीन के दुस्साहसपूर्ण व्यवहार का कड़ा प्रतिरोध करेगा।अशेष !
© अर्चना आनंद भारती
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