" अगर मैं डॉक्टर होती तो अपने मरीजों का मुफ्त इलाज करती, उन्हें यूँ जीवन - मृत्यु के संघर्ष पर बेसहारा नहीं छोड़ती । " मैंने ज़रा तैश में आकर डॉक्टर माथुर से कहा था।
डॉक्टर माथुर को मैं तब से जानती थी जब वो डॉक्टर नहीं थे।पड़ोस में होने के कारण वो हमारे परिवार के स्वघोषित फैमिली डॉक्टर बन गए थे।
लेकिन मेरा मन तब से उन्हें कुसूरवार मान बैठा था जबसे सौम्या के पिता का देहांत उनके इलाज के दौरान हुआ था।सौम्या मेरी सहेली थी और उसके पिता डॉक्टर माथुर की निगरानी में थे जो कोरोना के इलाज के दौरान चल बसे थे।मुझे लगता था कि अगर उनका समय पर इलाज हो जाता तो शायद वह जीवित होते।
लेकिन डॉक्टर माथुर तिलमिला से उठे थे मेरे आरोपों से - "जानती हो स्वरा,हम जैसे नए डॉक्टर एक पूरे अस्पताल प्रबंधन के आगे काम करते हैं और जिस मोटी फीस की तुम बात कर रही हो न,इसी रकम का प्रयोग अस्पताल में बेहतर सुविधाएं और आधुनिकतम मशीनें लगाने में किया जाता है।"
आज के दौर में जब हर चीज़ महँगी है तो भला चिकित्सा इससे अछूती कैसे रह सकती है?"
" और इसलिए आप पैसों के लिए मरीजों की ज़िंदगी दाँव पर लगा देते हैं?" मैं अब भी गुस्से में थी।
डॉक्टर मेरी बेबुनियाद बातों से खिन्न होकर चले गए थे।उस दिन जब रात में मैंने मोबाइल खोला तो उसमें कुछ तस्वीरें थीं - भारी भरकम पीपीई किट पहने डॉक्टर, पीपीई किट उतारते समय पसीने से नहाए डॉक्टर, आधी रात तक मरीजों के इलाज में जुटे डॉक्टर
एक मैसेज भी था जिसमें लिखा था - "जानती हो स्वरा,अच्छे और बुरे लोग हर जगह होते हैं, डॉक्टरी का पेशा भी इससे अछूता नहीं होता,पर सभी डॉक्टर एक जैसे नहीं होते।"
मैं एक अपराधबोध से भर उठी थी," ये मैंने क्या कर दिया?"
उस दिन के बाद वो कई दिनों तक दिखाई नहीं दिए।मेरे मन में एक अजीब सी ग्लानि घर कर गई थी।
इस कोरोनाकाल में डॉक्टर माथुर आख़िर कबतक खैर मनाते?माँ ने बताया था कि डॉक्टर माथुर भी कोरोना की चपेट में हैं और होम क्वैरेंटाइन में हैं।शायद थकान और वायरस दोनों का साझा हमला था उनपर।
पर उनके बीमार होने की बात ने मुझे तड़पा दिया था।उफ्फ्,ये अपराधबोध भी कितनी खराब चीज़ है, आपका साँस लेना तक दूभर कर देती है।
डॉक्टर माथुर चौदह दिनों के क्वैरेंटाइन में थे।ये चौदह दिन चौदह साल लगे थे मुझे।
आख़िर एक दिन मैंने कंपकंपाते हाथों से उन्हें फोन मिलाया था।
" हैलो " उधर से आवाज़ आई थी।मेरी दुनिया जैसे थम सी गई थी।
" कैसे हैं आप?" बड़ी मुश्किल से मैंने पूछा था।
" पहले से बढ़िया"
" डॉक्टर माथुर, प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए।"
जवाब में वो चुप रहे थे।मैंने अपनी बात कांपते हुए दुबारा कही।जवाब में एक हल्की सी खाँसी आई थी।
" आप ठीक हैं न?"
" हाँ,बहुत जल्द पूरी तरह ठीक हो जाऊँगा।"
मैं उनकी रिपोर्ट्स का इंतजार करने लगी थी।आज जब दुबारा फोन किया तो फोन आंटी ने उठाया।
" हाँ बेटा, कहो।"
" आंटी, डॉक्टर माथुर कैसे हैं अब?"
" ठीक है बेटा, शायद बाहर कहीं निकला है।"
मेरी साँस में साँस आई थी।फोन रखकर पलटी कि किसी से जा टकराई।मुस्कुराते हुए डॉक्टर माथुर सामने खड़े थे।वो पूरी तरह ठीक हो चुके थे पर मैं बीमार हो गई थी उनके प्यार में।
अशेष,
मौलिक एवंं अप्रकाशित
अर्चना आनंद भारती
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुंदर सृजन
स्नेहिल आभार आपका 😊
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