भारत एक बहुरंगी संस्कृतियों वाला देश है।यहां विविध भौगोलिक विशेषताओं के साथ त्यौहारों में भी अनेक विरोधाभास देखने को मिल जाते हैं।पूरे उत्तर भारत में आज भी जहां बच्चियों मेंं यौवनारंभ (puberty) को लेकर ग्रंथियां और भ्रांतियां हैं वहीं दक्षिण भारत में इसे एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।जी हां,हम बात कर रहे हैं दक्षिण भारत के हल्दी उत्सव की जिसे वहां ऋतुकला संस्कारम् के नाम से जाना जाता है।
ऋतुकला संस्कार दक्षिण भारत में सदियों से चली आ रही एक परंपरा है जो लड़कियों के पहले मासिक स्राव के बाद मनाई जातीहै। यह परंपरा न केवल लड़कियों के शारीरिक और हार्मोनल बदलावों का स्वागत करती है बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भावी जीवन के लिए तैयार भी करती है।
जिस बच्ची का यौवनारंभ होता है उसे राजकुमारियों की तरह का अनुभव दिलाती यह परंपरा बेहद दिलचस्प भी है। सबसे पहले लड़की के चाचा को इसकी सूचना दी जाती है।फिर पांच तेलों से बने एक विशेष मिश्रण और हल्दी चंदन से लड़की को ऊबटन लगाया जाता है।फिर एक पारंपरिक स्नान करवाते हैं।लडकी के चाचा की इस पूरे आयोजन में अहम भूमिका रहती है।
लड़की को एक नारियल के पत्तों से बनी झोंपड़ी में पन्द्रह दिनों तक रखा जाता है।इस दौरान उसका हर तरह से ध्यान रखा जाता है।उसे शुद्ध शाकाहारी और पौष्टिक भोजन दिया जाता है और हर तरह की सुविधा और असुविधा का ध्यान रखते हैं।सोलहवें दिन घर में पूजा आयोजित की जाती है और एक पार्टी आयोजित की जाती है जिसमें सभी सगे संबंधी आमंत्रित होते हैं।लड़की को नए कपड़े और आभूषण पहनाए जाते हैं और पूरे धूमधाम के साथ उसके नारीत्व में प्रवेश का जश्न मनाते हैं।
और ये महज किताबी बातें नहीं हैं।अपने दक्षिण भारत प्रवास के दौरान मैंने इन चीज़ों को बेहद करीब से देखा समझा है।दक्षिण की यह परंंपरा जहां यौवनारंभ और मासिक धर्म को सामाजिक स्वीकृति देती है वहीं नारी स्वास्थ्य से जुड़े इस बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे को गुप्त रखने और लज्जाजनक बताने वालों को कड़ा संदेश भी देती है।यह परंपरा हम उत्तर भारतीयों के लिए निश्चित तौर पर अनुकरणीय है।ये मेरे अपने विचार हैं।पर आप सब इस विषय पर क्या राय रखते हैं,मुझे ज़रूर बताएं।मुझे आप सब की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।आप मुझे लाइक,शेयर और फालो भी कर सकते हैं।धन्यवाद!
अर्चना आनंद भारती
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