कविताएँ आ बैठती हैं
मेरे मन की मुंडेर पर
किसी नन्हीं चिड़िया जैसी
या ओस की नन्हीं बूंद झर जाए
किसी कोमल पत्ती पर
अधखिले फूलों से झांककर
मुस्कुरा देती हैं कभी
या गोद में आ बैठती हैं
किसी चंचल शिशु की तरह
और मैं एक मुग्धा माँ सी
पूछ बैठती हूँ वात्सल्य से भरकर
"कहो मेरे शिशु, यह मेरी आत्मश्लाघा तो नहीं?"
©अर्चना आनंद भारती
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बेहद उम्दा कृति दी
हार्दिक आभार प्रिय अनुज 💞
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