मेरी दैनन्दिनी,
अरसा बाद आज तुमसे मुखातिब हूँ कुछ अपनी बातें लेकर।पता है आज कवि प्रयाग शुक्ल की एक कविता पढ़ रही थी - 'समय' जिसमें कवि ने समय न होने की विवशता ज़ाहिर की है और तभी मुझे तुम याद हो आईं और अचानक ही मुझे याद हो आया दिनभर का मेरा सबसे सुंदर समय - सुबह का समय!
सुबह का समय कितना स्फूर्तिदायक होता है न? मुझे तो लगता है कि उस समय अपने फेफड़ों में भरी गई प्राणवायु मुझे दिनभर ऊर्जा प्रदान करती है।
मैंने जब सुबह की सैर शुरू की थी तो मेरा मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य था लेकिन एक दिन यूँ ही एक मित्र की वाल पर एक वीडियो देखा जिसका शीर्षक था 'सुबह का संगीत' और फिर अचानक ही जैसे कुछ भूला हुआ सा याद हो आया मुझे... चिड़ियों का कलरव, नई उगी कोंपलों की कोमल मंद सरसराहट और सूर्योदय !
मुझसे लोगों को हमेशा ही शिकायत रही है कि मैं ज़रा मोटी बुध्दि की हूँ, कि मेरी आँखें बहुत स्थिर सी हैं, कि मैं दुनियावी चीज़ों में ज़्यादा रूचि नहीं लेती।लेकिन न जाने क्यों मुझे लगता है कि जिनकी अंतस की आँखें थोड़ी खुली होती हैं न, वो बाहर से ऐसे ही भोथरे दिखते होंगे, मुझ जैसे।
चाचाजी कहते थे - "भक्त भेख बहु अंतरा, जैसे धरणी आकाश"... न जाने क्यों जिन लोगों ने मुझे जीने का सलीका सिखाया वो एक एककर मुझसे दूर चले गए...आह!
ख़ैर, मैं बात कर रही थी सुबह की सैर की तो रोज़ सुबह जब मैं अपनी पदयात्रा पर होती हूँ तो जो पहली चीज़ नज़र आती है वो है अरुणाभ अरुण यानि सूर्य...अखंड ऊर्जा का स्रोत सूर्य और मैं नतमस्तक हो जाती हूँ।क्षणभर को मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं उस विराट की मानसपुत्री हूँ और मेरे अंदर जो जीवनीशक्ति है वह सूर्य की ही कोई किरण है।
फिर चिड़ियों का कलरव, प्रकृति का यह संगीत कितना मधुर है, कितना सम्मोहक, ये कान में हेडफोन लगाए मॉर्निंग वॉक करते हुए लोग कभी नहीं जान पाएंगे।
लेकिन पता है कभी मंद सप्तक और कभी तार सप्तक पर जब सुबह का यह अनगढ़ लेकिन बेहद सुरीला संगीत सुनती हूँ न, तो लगता है जैसे कोई दिव्य स्वरलहरी किसी अज्ञात भाषा में कोई संकेत सा दे रही है कि ये जीवन की ऊर्जा, ये सौंदर्य सिर्फ तुम्हारे लिए है और पता है इसलिए मैं कभी वीतरागी नहीं होना चाहती।
मैं प्रकृति के इस सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध हुई जाती हूँ कि तभी हवाएँ एक गुप्त संदेश मेरे कानों में डालती हुई गुज़र जाती हैं - प्रकृति तो हमेशा से एक अनहद संगीत है, बस तुमने इसे पहचानने में ज़रा देर कर दी।
ख़ैर, अब यह पदयात्रा मेरी जीवनयात्रा का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है क्योंकि उस विराट की सूक्ष्मतम चेतना के साथ साक्षात्कार का कोई भी मौका अब मैं नहीं चूकना चाहती।अशेष!
©अर्चना आनंद भारती
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह... जी चाहता है बस पढ़ते रहें। डायरी के बाकी पन्ने भी पढ़ना चाहेंगे।
हार्दिक आभार प्रिय 💞💞
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