मेरी आँखों ने लिखे,उन आँखों को पत्र
आँखों आँखों में शुरू, हुआ प्रेम का सत्र
उन आँखों में डूबकर, छोड़ा सब संसार
पढ़ना लिखना भूल गए, दिखता प्यार ही प्यार
प्रेम मगन जब मन भया, भूल गए दिन रात
अब सपने में भी करें, बस उनसे ही बात
लागै पै ना छूटता, है असाध्य यह रोग
आई परीक्षा की घड़ी, हाय बुरा संयोग
अंक मिले हैं न्यून अब,बेड़ा अपना गर्क
अफ़सर बनने थे चले, बन बैठे हैं क्लर्क
अम्मा बाबूजी रूठे, हाय समय का चक्र
कसते तीखे तंज अब, दृष्टि उनकी वक्र
हम कहते अनुरोध कर, कर लो तुम स्वीकार
बिना चाकरी के कभी, करना ना तुम प्यार!
©अर्चना आनंद भारती
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