प्रेम और माटी
भीगी माटी की सुगंध प्रेम की अनुभूति देती है
ओस से गीली माटी, प्रेम की भीनी सुगंध
या बारिश से पूरी तरह भीगी, प्रेम रस से सराबोर
इस सोंधी माटी में तैरती है एक अतृप्त सुगंध
प्रेम की मख़मली अनुभूति की
इस भीगी माटी की सुगंध में
तैरती रहती हैं कुछ अदृश्य प्रेम कविताएँ
और दूर-दूर तक दिखाई देते हैं
कुछ अमिट पदचिह्न, जो मेरे-तुम्हारे साझा बने थे
समय की हथेली पर
तमाम झंझावातों से गुज़र कर भी वो
उतने ही अमिट हैं, उतने ही अक्षुण्ण
बताते हुए कि प्रेम शाश्वत सत्य है
उतना ही जितनी कि ये भीगी माटी
चराचर, अंतिम, पूर्ण सत्य!
©अर्चना आनंद भारती
Comments
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बहुत सुन्दर
Wah
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