लेखनी नहीं जानती कि
इन नीली काली वीथिकाओं से
निकलेंगे कितने धनुर्धर
लेखनी यह भी नहीं जानती
कि उसकी नोंक से निकले
गीतों को देंगे कितने आल्हा ऊदल
अपना कंठ स्वर
लेखनी तो बस इतना जानती है
कि जिस दिन यह थककर टूट जाएगी
उस दिन उग आएगा
काँटों के उपवन में कहीं
एक नन्हा सा पाटल!
©अर्चना आनंद भारती
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुंदर
सदैव की भाँति उत्कृष्ट सृजन
हार्दिक आभार @Shubhangini Sharma 💜
बहुत शुक्रिया भाई @Kumar Sandeep 💜
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