"सुभिया,कहाँ मर गई करमजली,कब तक पड़ी रहेगी,सुबह के सात बज गए, सोई है महारानी अब तक"
हड़बड़ाकर सुभिया उठ बैठी।"पर अम्मा, आज तो इतवार है,आंंखें मसलते हुए सुभिया ने कहा।
"केशव को टयूशन जाना है, जा जल्दी जाकर चाय-नाश्ता तैयार कर दे।"
"अच्छा अम्मा, अभी जाती हूँ",बिना किसी प्रतिवाद के सुभिया बिस्तर छोड़ रसोई में भागी।कोई 15 एक की सुभिया अपनी उम्र से ज़्यादा समझदार हो गई थी।अपने मां-बाप की तीसरी बेटी थी जो बेटे की आस में आ गई थी।पर सुभिया धरती पर अकेली नहीं आई थी, अपने साथ अपने जुड़वां भाई केशव को भी साथ लाई थी।इसलिए दादी ने उसका नाम सुभद्रा रख दिया था।
पर घर के कामों में डूबी अम्मा को न जाने सुभद्रा से क्या खुन्नस थी कि उसे सुभिया ही बुलाती।करमजली तो जैसे सुभिया का पर्यायवाची शब्द था।
दोनों बड़ी बहनों की शादी के बाद अकेली पड़ गई अम्मा की सुभी भाग-भागकर मदद करती रहती।दादी माँ के तानों से तंग आई अम्मा अपना सारा आक्रोश सुभी पर उतारती।केशव को कोई कुछ नहीं कहता,वो इस घर का इकलौता चिराग जो था।
"अम्मा मुझे भी बादाम वाला दूध पीना है" ,ठुनकती हुई 10 साल की सुभी ने कहा था।
"तू ये पी ले",पानी मिलाकर उबाला हुआ दूध आगे करती हुई अम्मा ने कहा था, "लड़कियों को खालिस दूध नहीं पचता"
पर सुभी उस दिन ज़िद पर अड़ गई थी कि बादाम वाला दूध ही पिऊंगी।फ़िर तो अम्मा ने सुभी की जो मरम्मत की थी कि पूछिए मत।
तब से सुभी ने अम्मा के आगे हथियार डाल दिए थे।दिन भर अम्मा की परछाईं सी डोलती सुभी के मन में यह भेद देख एक आह सी उठती।रात को जब सब सो जाते, तब जागकर पढ़ाई करती,चोरों की तरह।
केशव को दुनिया भर की सुविधाएं हासिल थीं और सुभी को स्कूल भेज कर ही माता-पिता ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली थी।वैसे भी कस्बाई इलाकों में लड़कियों को उतना ही पढ़ाते हैं जितने में उनके लिए योग्य घर-वर ढूंढा जा सके।पर प्रतिभा परिस्थितियों की मोहताज कहां होती है? मां सरस्वती ने भी अपनी कृपा इस साधनहीन बच्ची पर जमकर बरसाई थी।
दोनों भाई-बहन दसवीं में पहुंच गए थे।अगले वर्ष बोर्ड की परीक्षाएं थीं।सुभी चुपचाप परीक्षा की तैयारियों में जुटी हुई थी।केशव को तो खेलों और दोस्तों से ही फ़ुर्सत नहीं थी।
दसवीं की परीक्षाएं हो गई थीं।परिणाम भी आ गए।केशव बड़ी मुश्किल से पास भर हो पाया था।सुभी ने जिले भर में टॉप किया था।
पूरे गांव में ये खबर आग की तरह फैल गई थी।सुबह से बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था।स्थानीय खबरिया चैनलों के पत्रकार भी आ गए थे।
"बताईए, किस प्रकार की तैयारियां आपने अपनी बेटी को करवाईं?"पत्रकार ने अम्मा के मुंह में माइक ठूंसते हुए पूछा था।
"देखिए, हमारे घर में शुरू से बेटे-बेटी को समान अवसर दिए गए हैं।हमने परीक्षा के दिनों में सुभी का हर तरह से ध्यान रखा।रोज रात को बादाम वाला दूध पिलाती थी ताकि मेरी बिटिया की याददाश्त अच्छी रहे।मैं उसे सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने को कहती थी।घर के काम करने को तो पूरी उम्र पड़ी है।"
और अम्मा की बातों में सच्चाई का पुट तलाशती सुभी हतप्रभ सी खड़ी थी।आंंखों में बचपन से लेकर अब तक के सारे दृश्य तैर गए।आंसुओं का बांध बह निकला।देखने वाले समझ रहे थे कि खुशी के आंसू हैं।
मौलिक एवं काल्पनिक
सर्वाधिकार सुरक्षित@अर्चना आनंद भारती
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