एक महिला होने के नाते सुन्दर दिखना हम सब का पहला हक होता है। पर न जाने क्यों इस मामले में मैं ज़रा पीछे छूट गई हूँ। फ़ैशन और मेकअप की उतनी समझ नहीं। कपड़े भी पारंपरिक किस्म के ही पसंद हैं मुझे।और ये आजकल के ज़माने के कपड़े तो मेरी समझ में ही नहीं आते। इतने आड़े-तिरछे और बेतरतीब से होते हैं कि समझ में नहीं आता कि ख़रीद कर सीधे पहन लेना है या काट-छांट कर पहले सीधा करना है।
ऐसा भी नहीं कि इस मामले में मैं निपट अनाड़ी ही हूँ।अपनी साड़ियां अच्छे तरीक़े से बांध लेती हूँ पर वेस्टर्न कपड़े ज़्यादा रूचते नहीं मुझे।शायद मेरी भारतीयता आड़े आ जाती है।
हमारी सोसायटी में जब कोई पार्टी होती है तो मेरी सभी सहेलियां इतने सुंदर तरीक़े से तैयार होकर जाती हैं मानो अजंता की मूर्ति हों।मेरे मन में ये सब देख-सुनकर हीनभावना घर कर जाती है।मन उनकी तरह तैयार होने का करता है।
मेरी एक सहेली हैं, मिसेज एस.। एकदम ट्रेंडी हैं।अगर मैं कहूं कि नए फ़ैशन की जानकारी हमें उन्हें और उनकी पोशाकें देख कर मिलती है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।मोहतरमा तो वैसे ही सुंदर हैं पर शादियों या पार्टियों में उनकी रौनक देखते ही बनती है।इतने अच्छे तरीक़े से तैयार होकर आती हैं कि देखने वालों की निगाहें हटती नहीं।मैं तो उनकी इस कला की कायल ही हूँ।
पर लाख चाहकर भी मैं उनकी तरह संवरना नहीं सीख पाई।एक दिन मैंने अपनी इस सहेली को अपनी समस्या बताई।उन्होंने कहा कि अगली बार जब तैयार होना हो तो मुझे बुला लेना।फ़िर क्या, मैं भी अगली पार्टी का इंतज़ार करने लगी।
तो,एक दिन की बात है।शाम में पार्टी थी तो मैंने मोहतरमा को बुला लिया।वो मेरे घर आईं और मुझे अपने हुनर से संवारने में जुट गईंं।बड़े यत्न से मेरा मेकअप करना शुरू किया।वो इस काम में जुटी थीं और मैं मन ही मन इतरा रही थी कि आज तो मैं घर से ऐश्वर्या बनकर ही निकलूंगी।इतने में मेरे पति और मेरी बेटी घर आ गए।और ये क्या,दोनों एक साथ चीख पडे़- 'ये क्या कर लिया तुमने?' मैं एकदम हैरान हो गई।अपनी कला का ये अपमान देख मेरी दोस्त मिसेज एस. सीधे मेरे घर से निकल गईं।मैं घबराई सी वाश बेसिन की तरफ भागी।शीशे में खुद को देखा।मेरी दोस्त की कला में कोई कमी ना थी, शायद मुझ पर ही ना जंचा ये सब।
उस घटना के बाद मेरे सिर से मेकअप का भूत जो उतरा कि उतर ही गया।पर क्या सुन्दर दिखने की सनक भी? हाहाहा,नहीं जी,वो तो आज भी बरकरार है।हां, तरीक़े थोड़े बदल गए हैं।अपने अंदर की सुंदरता निखारने में जुट गई हूं आजकल! खूब किताबें पढ़ती हूँ, अपना प्रिय संगीत सुनती हूँ, अपने प्रिय गीत गाती हूँ, कभी-कभी तैलचित्रों पर भी हाथ आज़मा लेती हूंं और हां,नियमित वर्कआउट भी करती हूं।गोया कि कोई कसर ना रख छोड़ी है। क्या पता मेरे अंदर का ये नूर चेहरे पर दिख जाए किसी दिन!
अभी हाल ही में मैंने अखबार में एक महोदया का परिचय पढ़ा था।सुधा कौल नाम है इनका।IICP नाम की एक संस्था चलाती हैं।यह संस्था सेरिब्रल पल्सी ,जो कि बच्चों की एक जन्मजात असाध्य बीमारी है, से ग्रसित बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास हेतु प्रतिबद्ध है।सुधा कौल की उम्र कोई 60-65 वर्ष की है।पर इस उम्र में भी उनके चेहरे पर गज़ब का आकर्षण है।सौंदर्य और गरिमा की प्रतिमा सी लगती हैं।अख़बार में जो इनकी तस्वीर देखी तो पांच मिनट देखती रही।कोई इस उम्र में भी इतना सुंदर दिख सकता है, यह बात मुझे हैरान करने वाली थी।तो यह शायद उनकी आंतरिक सुन्दरता, उनका ममत्व है जिसका नूर उनके चेहरे पर छिटकता है।
और ऐसा नहीं है कि बढ़ती उम्र के साथ हम सुन्दर नहीं रह जाते।मैं तो कहूंगी कि मां बनने के बाद हमारे सौंदर्य में एक ममतामयी गरिमा भी जुट जाती है।पर शायद हमारी आदत हो गई है सुन्दरता को एक निश्चित रूप में देखने की।चेहरे का एक नपा तुला आकार, एक विशेष शारीरिक संरचना ही आकर्षित कर पाती है हमें।सुन्दरता हमारे तय मानदंडों से इतर भी हो सकती है, ये हम सोच ही नहीं पाते।इसलिए सभी महिलाओं से मेरा आग्रह है कि सुन्दर दिखने की कोशिश तो करें पर अपनी आंतरिक सुन्दरता को भी निखारने की कोशिश करें।अपने आज में अपना कल ना ढूंढें,वर्तमान को भरपूर जिएं, ख़ुद को खोने ना दें।अब ज़्यादा कहूंगी तो कहोगे कि उपदेश देने लगी।इसलिए आज बस इतना ही।धन्यवाद!
©अर्चना आनंद भारती
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Outstanding
Thank you dearie 💞
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