दीदी आज फिर आई थीं ससुराल से,माँ और दादी फिर उसे एक अलग कमरे में ले गए थे समझाने के लिए।ये कोई पहली बार नहीं था जब ऐसा हुआ हो।सालों से ये देखता आ रहा था लेकिन आज पता नहीं क्यूँ दीदी की आँखों में एक अजनबियत सी थी,एक वीरानी जो मुझे अंदर तक तड़पा गई थी।
मुझे याद है जब मेरी फूल सी दीदी, अपने नीले नीले निशानों को छुपाती हुई कहती "जाने दे लल्ला, तू नहीं समझेगा, तू बड़ा हो जा मेरे भाई"
कभी कभी व्याकुल हो कहने लगती, " तू कब बड़ा होगा लल्ला?"
कभी पागलों की तरह सिर पटक पटककर रोने लगती पर हर बार माँ और दादी उसे समझाकर वापस भेज देतीं।दीदी जाने से पहले चुपके से मेरे पास आती और मेरे सर पर हाथ फेरकर पूछती - " तू कब बड़ा होगा लल्ला?" और डबडबाई आँखों से निहारती हुई चली जाती।
जीजाजी एकदम कड़े थे,अखरोट जैसे... उनके चेहरे पर एक ठसक, एक गुरूत्व हमेशा बरकरार रहता।उनके आते ही पूरा परिवार उनके आगे बिछ जाता पर उन्हें कभी भी खुश नहीं देखा।
दीदी अपनी मानसिक पीड़ा, अपनी यंत्रणा टूटे फूटे शब्दों में बतातीं,ये भी कि रोटी गोल न होना कितना बड़ा अपराध है, ये कि दूध ज़्यादा गर्म हो जाए तो सजा मिलती है।एक बार ऐसे ही दीदी ने रुआंसी सी आवाज में कहा था," जानता है लल्ला, औरत ना, बेवकूफ ही ठीक होती है, बुद्धिमान होना उसके लिए अभिशाप बन जाता है।तू न भैया, बड़ा होकर अच्छा वाला पति बनना, खूब अच्छा वाला..." तब नहीं समझता था पर अब इन पंक्तियों का अर्थ खूब समझ में आता है।
दीदी हमसब की हीरो हुआ करती थी, एकदम होशियार, पढ़ाई लिखाई ,हस्तशिल्प सबमें अव्वल।जब उन्नीस साल
की दीदी की शादी तय कर दी गई थी तब दीदी कितना रोई थी पढ़ने के लिए पर तब दादी ने कहा था कि लड़कियाँ चिट्ठी पत्री पढ़ लें,इतना काफी है, ज्यादा पढ़कर बिगड़ जाती हैं।
"भला कैसे?" मेरे नादान मन ने तब भी पूछा था।
मेरे पड़ोस में एक भाभी थीं, खूब सुंदर... मुझे दीदी जैसी लगतीं, कुछ दिनों पहले उनकी आग से जलकर मौत हो गई।मैंने देखा था शेखर भैया को उनके साथ जानवरों जैसा सुलूक करते हुए... एकदिन उनकी रसोई से आग की लपटें उठीं और भाभी की हृदयद्रावक चीखें और फिर सबकुछ खत्म हो गया।मैं कई रातें सो नहीं पाया... मेरी आँखों में दीदी, ममता भाभी,आग की लपटें, शेखर भैया का वहशीपन सब गड्डमड्ड होने लगे थे।
आज फिर दीदी एकबार याचना कर रही थी अपने ही जन्मदाताओं से कि उन्हें वापस न भेजें, आज फिर माँ और दादी उन्हें समझाकर भेज रहे थे।विक्षिप्त सी हो चुकी दीदी ने मुझे फिर एकबार देखा बेहद निराश आँखों से, इसबार कुछ पूछा भी नहीं।मैं क्षणभर को अपनी चेतना खो बैठा था, तभी गाड़ी की आवाज सुनकर मैं होश में आया, मैं फौरन ड्राइवर के पास जाकर बोला, 'गाड़ी रोको'
'क्यों?' बाबूजी ने पूछा।
" दीदी अब वापस नहीं जाएगी",मैंने दृढ़ स्वर में कहा।
" नहीं जाएगी तो ब्याही लड़की को घर में कौन रखेगा?"दादी ने पूछा।
'मैं',मैं कहता हुआ दीदी के पास आकर खड़ा हो गया था।उन पथराई आँखों से दो बूंदें मेरी हथेली पर आ गिरीं।हाँ,दीदी का लल्ला अब बड़ा हो गया था।
समाप्त,
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
sunder ❤❤
Touching, 🌺🌺
Thank you @SonnuLamba
Thank you @Udit Jain
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