Title भगवान का प्रतिरूप

A poem on mother

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Anvesha Rathi
Anvesha Rathi 05 Apr, 2022 | 0 mins read

शब्द ढूंढना भी कठिन था; मन में टिप्पणी बन रही थी, पर वह कविता नहीं बन पा रही थी। आंचल पकड़कर चलना सिखाया, जिंदगी के हर वक्त में लड़ना सिखाया, लड़ने की हिम्मत दी और जीने का सहारा बनी, जब रोई मैं तो आंसू पोछे जब दुखी हुई तो हिम्मत दी,

सीने से जब लगाया आपने दर्द सारे मैं भूल गई, गोदी में जब लिटाया आपने दुख सारे मैं भूल गई, माथे पर जब हथेली रखी चिंताएं सारी मिट गई, सिर पर जब हाथ फेरा हौसले से मैं भर गई, जब रूठी में मैं तो मनाया आपने,

शब्दों को कविता के रूप में लिखना सिखाया है आपने, हमारी हर परेशानी को अपनी परेशानी बना लेती हैं आप, हमारे सारे दुखों को हर लेती हैं आप, अपनी सारी खुशियां हमारी बना देती हैं आप, अपने सारे सुख हमारे नाम कर देती हैं आप,

मां तो एक जरिया है आप को पुकारने का, बस आप मां ही नहीं भगवान का प्रतिरूप है,

आपने चाटे से हमें डराती अपनी आंखें दिखा कर हमें समझाते, और अपने गुस्से से हमें पढ़ाते हैं पर भूल जाते हैं हम यह बात; कि इस गुस्से में छुपा है आपका लाड़, क्योंकि इन आंखों में है आपका प्यार और इस चाटे में छुपा है आपका विश्वास,

मां तो एक जरिया है आपको पुकारने का,मां ही नहीं भगवान का प्रतिरूप हैं आप|

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