Anurag Upadhyay
Anurag Upadhyay 12 Jul, 2022
कविता - तुम्हारे शहर में ।
घूम रहा हूँ मैं, तुम्हारे शहर मे, मुझे तुम्हारा मोहल्ला, कहीँ नजर नहीं आ रहा, दस्तक़ दे रहा हूँ मैं, तुम्हारे दरवाजे पर, दरवाजा हर बार कोई और ख़ोल रहा है, लगाया था पौधा तुलसी का, तुम्हारे आंगन में मैंने, सुना है अब वह, मुरझा सा रहा है। लेखक - अनुराग उपाध्याय ।

Paperwiff

by anuragupadhyay

12 Jul, 2022

कविता एक प्रेमी की उसके प्रेम के लिए ।

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