राह पर चलते चलते

एक सफर की बात

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Anuj Bhargav
Anuj Bhargav 03 Feb, 2023 | 1 min read

राह पर चलते चलते एक दर पर सर झुका जाना

 बंद दरवाजों पर अपनी आंखों की दस्तक दे आना

 कुछ देर में खुद को ऐसा समेट कर ,

 एक बंद कमरे में खुद को रखा आना 

हकीकत के कांटो को छोड़कर 

घर झूठे ख्यालो से सजा आना।

सुना कि रब्त शहर में खूशबू बिखराते रहे

हर दर, हर दीवार, हर आईने को सजाते रहे

कुछ गरीबो की वस्ती थी उस बाजार में

जो उस रात चांद का इन्तजार करते रहे।

और भूल गए हर वो पुराना किस्सा

वह आंखो में नए ख्वाब सजाते रहे।

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Anuj Bhargav

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