अस्तित्व

एक माँ की कहानी

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anu harbola
anu harbola 21 Oct, 2020 | 1 min read


कितने दिनों से तैयारी कर रही थी वो ऋतिक के उपनयन संस्कार की। प्रीतिभोज का वेन्यू और मेन्यू उसने और रवि ने बहुत सोच -विचार कर तैयार किया था। 

 रिश्तेदारों को देने की साड़ियों तक उसने, उनकी पसंद को ध्यान में रख कर खरीदी थीं।

कहीं कुछ कमी न हो इसके लिए उसने अपनी एक एफ. डी. भी तुड़वा ली थी। रवि ने कितना समझाया था पर वो तो अपने बेटे के उपनयन में कोई कमी ही नही होने देना चाहती थी।

आज सुबह से ही बहुत खुश थी वो, रिश्तेदारों से भरा घर, रसोई से आती पकवानों की खुशबू, सभी की मस्ती ठिठोली उसे और भी ऊर्जा प्रदान कर रही थी।

वो भी पूजा में बैठने के लिए बहुत पसंद से खरीदी साड़ी पहन कर तैयार हुई थी...

"तू कहाँ जा रही है?" उसकी सास ने कहा।

"ऋतिक और उसके पापा के साथ पूजा में बैठने।"

"तू और लल्ला रहने दो, आज उसके माँ- बाप को बैठ लेने दे पूजा में, उन्ही का हक भी होवे है।"

"पर मैं उसकी माँ हूँ, कानूनी रूप से गोद लिया है हमने उसे, खुद से ज्यादा प्यार करते हैं उसे हम, ये बात तो आप भी जानती हो अम्मा।"

"ये कानूनी बात मैं न जानू और न जानना चाहूँ... वो उसकी माँ की कोख का फल है और पूजा में बैठने का हक़ उसी का है। बंज़र ज़मीन का कोई मोल न होवे है,  ये बात तो तू भी जाने ही होगी, मास्टरनी जो ठहरी।"


"और मेरी ममता का अस्तित्व माँ?" ।

अनूपा हरबोला 

असम 

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