मेरी ख़ामोशी

Poem

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Anju
Anju 29 May, 2020 | 1 min read

मेरी ख़ामोशी को तूने रुसवाई समझ ली,

बिन जाने ही अपनी सोच बदल ली

चलना चाहते थे सीधा पर मोड़ था मुड़ना ही पड़ा ,

चाहते थे तेरा साथ पर साथ छोड़ आगे बढ़ना पड़ा

पलट कर बार बार तुझे ढूंढ रही थी यह आँखे,

तुझसे नजरे मिली तो तू अंजाना बन चला 

अपनी खामोशी को तुझे समझाना चाहते थे ,

क्यों बीता ऐसा वक़्त वो बताना चाहते थे 

जाने से पहले एक बार जान लिया होता ,

मेरी ख़ामोशी के पीछे छुपे दर्द को पहचान लिया होता 

शायद यह आंशु देख तू समझ लेता ,

हम उस दिन भी तुझसे रुसवा ना थे....ना है

-अंजू खुल्बे सक्सेना 



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Anju

anju

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    उत्कृष्ट सृजन

  • Anju · 4 years ago last edited 4 years ago

    😊😊

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत बढ़िया

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