"यूं तो सब बदल जाता है वक्त के साथ! वक्त, व्यक्ति, दरख़्त,परिंदे,मकान,शहर, रिश्ते!! पर कुछ है जो कभी नहीं बदलता वो है अतीत! आदमी इसी उधेड़ बुन में रहता है कि काश!! अतीत को बदल पाए! पर वो ऐसा कर नहीं पाता।
कई बार ना चाहने के बाद भी इंसान पहुंच जाता है अतीत के गलियारों में।"
सुधा छत पर बच्चों के साथ, सर्दी की खिली धूप में बैठी थी!
इतने में आवाज़ आईं -" बीवी जी!! साहब आए है नीचे!! उनका कोई दोस्त भी हैं!! आपको साहब ने बुलाया है!!"
सुधा धूप में बैठी , अपनी सोच के गलियारे में डूबी थी ; अचानक पल्लू संभालते हुए बोली -" अच्छा!! आरो! तुम रसोई घर में चाय नाश्ते का इंतजाम करो!! मैं बच्चों को लेकर आती हूं!!"
सुधा के 2 बच्चे हैं बिटिया निशा और बेटा कैलाश!!
सुधा ने निशा का हाथ पकड़ा और कैलाश को गोदी में उठाया।
अभी तो इतने दिनों बाद धूप खिली थी!! मेहमान को भी इसी वक्त आना था!!
ये सोचती हुई सुधा बैठक में हाजिर हुई।
"बच्चों!! नमस्ते करो अंकल को!! " - वीर ने कहा।
सुधा ये कैलाश हैं!! मेरे नए प्रोजेक्ट के सांझेदार!!
सुधा ने कैलाश नाम सुनते ही नजर उठकर मेहमान की तरफ देखा!!
देखा!! तो देखती ही रह गई!!
ऐसा लगा घड़ी की सुइयां रुक गई, धड़कन का तो पूछिए ही मत।
पूरा दिल जो निकल कर दो हिस्सों में पड़ा था!!
एक अतीत और एक वर्तमान!!
कैलाश ने सुधा का नाम सुनकर उसकी तरफ देखा तो गोदी में बैठे नन्हे गुड्डे को सोफे पर बिठाया और खड़ा हो गया।
उसके दोनो हाथ आगे बढ़कर उसको जिंदा होने का एहसास करवाते इससे पहले ही सुधा के बेटे की रोने की आवाज़ ने हर रुकी हुई चीज में फिर से जान डाल दी!!
कैलाश के बढ़ते हुए हाथ, अब प्रणाम की मुद्रा में थे और सुधा नजर झुकाए पल्लू का एक कोना दांतो तले दबाए नमस्ते कर रही थी!!
इतने में आरो चाय ले आई। सुधा ने चाय परोसी!!
एक कप वीर को दिया और दूसरा कप कांपते हाथों से उठाकर कैलाश को!!...
"आरो!! बच्चों को अंदर ले जाकर दूध पिला दो!! आप लोग बातें कीजिए मैं अभी आती हूं;" ये कहकर सुधा उठकर जाने को तैयार हुई।
वीर ने कहा - "अरे!! बैठो!! तुम भी चाय पियो!! ये बाकी सांझेदारों जैसे नहीं है। बहुत बड़े लेखक है और अब खुद की कंपनी भी शुरू की है जिसमें कला और साहित्य प्रेमियों को मौका देते है।"
तुम इन्हें अपने बनाए रेखचित्रों के बारे में कुछ बताओ!!
सुधा हैरान थी!! रेखाचित्र!!
सुधा अचानक फिर से यादों के गलियारे में पहुंच गई!!
शादी के कुछ दिन बाद वीर के कुछ दोस्त सुधा से मिलने आए थे, घर पर ही शाम का खाना भी रखवाया गया था!!
वीर की एक महिला मित्र ने पूछा -" आपका क्या पैशन या हॉबी है!!"
सुधा ने कहा -" बस कुछ रेखाचित्र बना लेती हूं!! कुछ पेंटिंग्स!!"
वीर ने बीच में टोकते हुए कहा; अरे छोड़ो!! छोटे शहर से है!! वहीं पुराने ज़माने के शौक हैं!!
चलो सुधा खाना लगवा दो!!
उस दिन के बाद सुधा ने कभी अपने रेखाचित्रों को वीर के सामने नहीं बनाया।
कुछ वक्त के लिए अपने रंगों और कैनवास को भूल ही गई थी!!
दूसरा बच्चा होने के बाद जब डॉक्टर ने कहा कि सुधा डिप्रेशन का शिकार होती जा रही है तो फिर से चित्रों को उकेरना शुरू किया!!
चित्र बनाती बनाती सुधा कब अतीत में चली जाती थी खुद उसे भी नहीं पता था।
वीर उसके तस्वीरों का मतलब कभी समझ ही नहीं पाया।
सुधा अपनी यादों से वापिस आई तो फिर से पूछा -" वीर!! मेरे कौनसे रेखाचित्र!!"
वीर ने कहा हमारी कंपनी को कैलाश जी की बुक डिजाइन करने के लिए कुछ रेखाचित्र चाहिए थे हमें कुछ नया सूझ नहीं रहा था।
ऊपर टहलते हुए तुम्हारी फाइल मिली और मैंने इनको दिखाई!! इन्होंने झट से अपना प्रोजेक्ट हमें दे दिया!!
अब तक बड़े बड़े लोगों को मना कर चुके थे!! कुछ अलग चाहिए था कैलाश जी को!!
इसलिए उन्होंने कहा कि जिसने चित्र बनाएं हैं मैं उनसे मिलना चाहता हूं!!"
सुधा के पैरों तले जैसे जमीन खींच ली हों किसी ने !!
वो बेसुध सी हो सोफे पर बैठ गई, उसकी नजरें कैलाश की तरफ देखने की हिम्मत ही नहीं कर पाई।
कैलाश भी सुधा को देख अपने अतीत की उन गलियों में लौट गया था, जहां वो रोज उसको ढूंढता था जिसने उसे जीना सिखाया।
कैलाश और सुधा एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। दोनों को एक दूसरे से बहुत प्यार था!!
पर कैलाश की नशे की आदत की वजह से सुधा के पिताजी ने शादी से साफ इंकार कर दिया था!!
सुधा की शादी वीर से हो गई और कैलाश सुधार गृह पहुंच गया था।
सुधा अपने बनाए रेखाचित्र एक सहेली के पास रख गई थी। हर हफ्ते कैलाश के नाम एक चिठ्ठी और चित्र जाता।
कैलाश 6 महीने बाद जब लौटा तो एक अलग ही इंसान था, उसने खूब सुधा को ढूंढने कि कोशिश की!!!
अब जब 6 साल बीत गए तो उसे अपनी आत्मकथा के लिए कुछ अलग डिजाइन चाहिए थे । वीर के दिखाए डिजाइन उसे पसंद आए। वो डिजाइन उसे सुधा की फिर से याद दिलाने लगे और वो सुधा तक पहुंच ही गया!!
अब वो सुधा को एक धोखेबाज समझ रहा था, जिसने सिर्फ नशे की आदत की खातिर उसे छोड़ किसी बिजनेस मैन से शादी कर ली थी!!
इतने में वीर के बेटे के रोने की आवाज़ आई ।
जिसे सुनकर कमरे में पसरा हुआ सन्नाटा टूट गया!!
वीर ने आवाज़ लगाई -" आरो!! कैलाश को यहां ले आओ!! मां के पास आकर चुप हो जाएगा!!"
कैलाश एकदम से खड़ा हो गया और वीर को हैरानी से देखने लगा !!
वीर ने कहा -" जी !! मेरे बेटे का नाम भी कैलाश है!! सुधा ने ही रखा है!! पहले तो मुझे लगा थोड़ा पुराना है!! पर आप जैसे बड़े लेखक और विद्वान से मिलकर मैं चाहता हूं कि ये आप जैसा ही बने!!"
वीर की आंखें आत्मग्लानि से भर गई!! जिस लड़की को इतने साल खोजता रहा!! बिना समझे; बिना कुछ जाने मिनटों में ही धोखेबाज,बेवफा जाने क्या क्या सोच लिया उसके बारे में!!
कैलाश वहां से ये कहकर चला गया कि कुछ जरूरी काम याद आ गया!! अभी आता हूं एक फोन करके!!
सुधा सोफे पर एक बरसे हुए बदल सी शांत और ठंडी पड़ी थी!!
उसे अंदाज़ा ही नहीं था कब अतीत करवट लेकर उसके सामने आया और कब यादों के दृश्य की तरह औझल हो गया!! उसे यकीन ही नहीं आया कि उसका अतीत उसके वर्तमान के पास से होकर गुजर गया!!
आरो बेटे को अंदर लाई!! बच्चा मम्मा!! मम्मा!! कहकर सुधा से लिपट गया!!
सुधा ने भी अपने वर्तमान को गले लगाया और अतीत को ठंडी हवा के झोकें की तरह विदा कर दिया!!
सुधा को जो आत्मग्लानि थी कि कैलाश जब ठीक होकर आयेगा तो उसके इंतजार का क्या जवाब कैसे दूंगी!!
अब कैलाश का इंतजार भी खत्म हो गया था!!
दोनों ने अपने वर्तमान को अपनाया और अतीत की मीठी यादों को अपने पैशन में ढालकर खुद को नई ज़िंदगी शुरू करने का मौका दिया!!
अब सुधा की डिप्रेशन की दवाइयां भी बंद हो चुकी थी!!
सुधा अब बच्चों संग खूब खिलखिलाती और कैलाश की आत्मकथा , उसका सुधार गृह का सफर ये किताबें भी पढ़ती!!
कैलाश ने भी शादी कर ली थी, उसकी एक प्यारी सी बेटी हुई जिसकी नाम उसने रखा " सुधा" !!!
#दोस्तों!! ज़िन्दगी सबको दूसरा मौका जरूर देती है!! ये हम पर निर्भर है कि उसे अतीत को सुधारने में लगाए या वर्तमान को!!
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आपकी स्नेह प्रार्थी
अनीता भारद्वाज
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