" ज़माना हमेशा ही हवा के विरुद्ध जाने से घबराता रहा है!! जिसने हवा के विरुद्ध जाने की कोशिश की उसे या तो अकेला कर दिया जाता है या उसे बागी घोषित कर दिया जाता है। ये मीडिया का युग है जो हवा के विरुद्ध जाने वालों को अपराधी तक बना सकता है!!
उसके दिन रात के संघर्ष को राजनीति में लिपटा दिखा सकता है।
वो लोग जो घर बैठे सिर्फ बिके हुई समाचारों की बाते सुनते हैं, वो संघर्ष को राजनीति की चादर में लपेट देते हैं।!!"
हमारे किसान भी उसी चक्की के पटों के बीच आ गए हैं जहां एक तरफ राजनीति की गन्दी चाल और दूसरी तरफ बिके हुए चैनलों के रिपोर्टर ।
किसानों के लिए बनाए कानून किसान का कितना फायदा करेंगे कितना नुकसान करेंगे ये किसान ही बता सकते हैं।
घर बैठे लोग सिर्फ अंदाजे लगा सकते हैं।
जो लोग ये सोचकर बैठे हैं कि किसान तो राजनीति के चक्कर में आ गए हैं उन्हें शायद मालूम नहीं राजनीति की चादर में इतनी ताकत कहां जो अपने के दिए ज़ख़्म और मौसम की मार को सहन कर ले।
किसानों का ये संघर्ष बेबुनियाद नहीं है, इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है की उनके आंदोलन को खतम करने के लिए साम दाम दण्ड भेद हर नीति अपनाई जा चुकी है।
ये ज़माना शायद भूल गया है कि देश को आज़ाद करने वालों ने कितनी कुर्बानियां दी और गुलामी की हवा को
बदल दिया!!
ये संघर्ष भी इतिहास में याद रखा जायगा!!
किसानों के संघर्ष को बदनाम करने के लिए उसे दंगो। का रूप देकर , तिरंगे का अपमान करवाकर लोगों की एकता को सिर्फ तोड़ने की कोशिश की गई है।
इस कोशिश में कुछ लोग सफल भी हुए है।
पर आसान बेशक ना हो ज़माने की हवा बदलना, पर मुमकिन नहीं ये किसने कहा!!
किसान खेत के कांटो से चलकर अब कीलों तक पर चल पड़े हैं!!
ये संघर्ष यूं ही नहीं रुकेगा!!
मेरा समर्थन किसानों के साथ है।
यूंही डटे रहो , आप हो तो हम हैं।
अनीता भारद्वाज
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