"मेरे घर के त्यौहार तुम्हारे बिना सूने हैं। मैं अपने आप में संपूर्ण होता तो शादी की जरूरत ही क्यों होती। अब मैं और तुम सांझेदार हैं, हर दुख - सुख , हर उत्सव, हर नुकसान - फायदे के!" - हरीश ने सौम्या को कहा।
सौम्या और हरीश की शादी को अभी 4 महीने ही हुए थे।
सौम्या की शादी उसके पापा के स्वास्थ्य की बिगड़ती हालत की वजह से जल्दी जल्दी में कर दी गई ।
सौम्या ने अभी बस मास्टर्स की पढ़ाई ख़त्म ही की थी, सौम्या कोई जॉब ढूंढ़कर ही शादी करना चाहती थी।
पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, मास्टर्स के नतीजे आने से पहले ही सौम्या की शादी हो गई ।
हरीश भी चाहता था कि उसकी पत्नी कोई कामकाजी महिला हो, ताकि दोनों एक दूसरे को और अच्छे से समझ सके।
हरीश का मानना था कि जॉब करने वाली लड़की ही बुरा वक़्त पड़ने पर साथ निभा सकती है।
सौम्या और हरीश की शादी हुई, हरीश की फ़ैमिली ने दोनो को ट्रीप पर भेज दिया ताकि एक दूसरे को वक़्त देकर समझ सकें।
हरीश -" तुम्हारे अनुसार कामकाजी महिला होना बेहतर है या घरेलू महिला!"
सौम्या -" महिला तो महिला होती है, घरेलू हो या कामकाजी ; कोई खास फर्क नहीं!"
हरीश -" अच्छा!! अगर कोई फर्क नहीं तो लोग जो इतनी मेहनत करते हैं , वो बेकार ही वक़्त बर्बाद करते हैं क्या!!"
सौम्या -" मेहनत की हुई बेकार नहीं होती, चाहे किताबों के साथ की जाए या किचन में। वैसे भी जो कामकाजी महिला हैं वो भी अपने घर का काम करती है; तो दुगुनी मेहनत हुई।
जो घरेलू महिला है उनमें से ज्यादातर अपने घर के काम खुद करती है बिना किसी कामवाली की मदद से और बाज़ार, बच्चे, परिवार सब खुद संभालती हैं; वहां भी मेहनत हुई। "
हरीश -" अच्छा!! मतलब भविष्य में तुम्हारा नौकरी करने का कोई प्लान नहीं है।"
सौम्या -" नहीं! आप गलत अंदाज़ा लगा रहे हैं। मैंने पढ़ाई अपनी पहचान बनाने के लिए की है, उसके लिए अपनी नौकरी तो जरूरी है।"
हरीश -" पहचान!! तुम एक सीनियर इंजीनियर की पत्नी हो। तुम्हें पहचान की क्या जरूरत! वैसे तो नौकरी की भी जरूरत नहीं। मेरे सब दोस्तों की पत्नियां कामकाजी हैं उनके बीच जाकर तुम खुद को छोटा महसूस ना करो, इसलिए चाहता हूं कि तुम भी जरुर नौकरी के लिए कोशिश करो।"
सौम्या -" मैं किसी को दिखाने के लिए मेहनत नहीं कर सकती, पर मैं अपनी पहचान के लिए जरुर मेहनत करूंगी।"
हरीश -" मुझे लगता है, हमने शादी में जल्दी करदी। अभी हमें बहुत वक़्त लगेगा एक दूसरे को समझने में।
मैं चाहता हूं तब तक तुम भी अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाओ। अपनी गृहस्थ जीवन की शुरुआत एक दूसरे को जानने के बाद ही होगी।"
सौम्या -" ठीक है!!"
इसके अलावा सौम्या के पास कोई चारा भी नहीं था। वो जब मेहनत करना चाहती थी तो जल्दी जल्दी में शादी हो गई।
अब जब हर लड़की की तरह उसने भी कुछ सपने संजोए थे, फिर से उसके सामने दोराहा आ गया।
दोनों घर वापिस आए। हरीश की माता जी बहुत खुश थीं।
हरीश और सौम्या ने मां के पैर छुए और आशीर्वाद लिया।
माताजी -" खुश रहो मेरे बच्चों!! अब जल्दी से मुझे अपने आंगन में एक नन्हा सा मेहमान दे दो। बस फिर ज़िन्दगी की सारी खुशियां मिल जाएंगी।"
हरीश और सौम्या ने एक दूसरे को देखा। हरीश ने लंबी सांस भरी और अंदर चला गया।
माताजी -" बेटा!! मेरे पास बैठो। सच सच बताना! इसने तेरा ध्यान रखा की नहीं!!"
सौम्या -" हां मम्मी जी!! बहुत अच्छे से ध्यान रखा।"
माताजी -" बेटा!! मैं भी इस उम्र से ही गुजरी हूं। नई दुल्हन के चेहरे वाला नुर दिख नहीं रहा मुझे! तुझे कसम है मेरी सच बता!!"
सौम्या -" नहीं मां जी!! ऐसी कोई बात नहीं। आपको पता है पापा की तबीयत के चलते जल्दी जल्दी में शादी हो गई। मैं भी चाहती हूं कि नौकरी करूं और हरीश भी यही चाहते हैं।"
माताजी -" अच्छा!! तो ये इसकी बनाई दीवारें है! वो बेशक मेरा बेटा है पर मैं समझ सकती हूं तेरे दिल का हाल!! तू रुक उसको मैं समझाऊंगी, सिर्फ नौकरी से कोई सच्चा साथी नहीं बनता। एक दूसरे की फिक्र, प्यार, अपनेपन से बनता है।"
सौम्या -" मां जी !! आपको मेरी कसम है। आप उनको कुछ मत कहना!"
माताजी -" मैं उसको कुछ कहूंगी नहीं, उसको एहसास कराऊंगी। तुम जाओ अब आराम करो।"
अगले दिन डिनर टेबल पर हरीश ने मां से कहा -" मां!! सौम्या को कुछ दिन इसके घर भेज दो। इसका रिजल्ट भी आ गया है। इसकी नौकरी का फार्म भर दिया है।इसको नौकरी के लिए तैयारी करने में आसानी होगी।"
माताजी -" हां तो कर लेगी तैयारी!! ये भी तो इसी का घर है। जरूरी किताबें और सामान ले आएगी। यहां कौनसा कोई बच्चे है कि पढ़ नहीं पाएगी। ज्यादा वक़्त चाहिए होगा तो एक कामवाली रख लेंगे।"
हरीश -" नहीं मां! यहां वो डिस्टर्ब रहेगी घर पर ही पढ़ाई हो पाएगी ।"
माताजी -" तुझे किसने कहा वो डिस्टर्ब होगी। वहां उसे मेरी याद आई और उसका मन ना लगा तो!! क्यूं बहू ठीक कह रही हूं ना!!"
सौम्या शर्माती हुई किचन में चली गई ।
हरीश -" मां!! वो तो कुछ बोलेगी नहीं। मैं कह रहा हूं भेज दो तो भेज दो!!"
खाना बीच में छोड़कर रसोईघर की तरफ से गुजरते हुए सौम्या को कहा -" सामान पैक कर लेना, शाम को छोड़ आऊंगा।"
माताजी ने सोचा कि अब यूं खींचातानी से तो बात बनेगी नहीं, सौम्या को कहा -" बेटा!! तुम कुछ दिन हो आओ मां की तरफ! तुम्हारा भी दिल खुश हो जाएगा! और मेरा वादा है ये दौड़ता हुआ तुझे लेने जाएगा!"
शाम को सौम्या को घर छोड़ते वक़्त गाड़ी में हरीश ने सौम्या का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा -" ये मत सोचना कि मुझे तुमसे कोई प्यार नहीं!! बस मैं चाहता हूं तुम बिना ध्यान भटकाए पढ़ाई करो। मैं मिलने आता रहूंगा।"
सौम्या की आंखों में आसूं आ गए। जिन्हें देखकर हरीश भी हैरान था। वो समझ ही नहीं पाया सौम्या के दिल का हाल।
सौम्या को घर छोड़कर , मां पापा से आशीर्वाद लेकर हरीश घर आ गया।
माताजी -" बेटा!! थोड़ी चाय बना दो तबीयत ठीक सी नहीं लग रही।"
हरीश -" क्या हुआ मां!!"
माताजी -" अरे!! मन नहीं लग रहा बहू के बिना। सारा घर सूना सा लग रहा है। छोड़!! तुझे क्या पता चलेगा तू तो ऑफिस रहेगा, अकेली तो मैं पड़ गईं। "
हरीश -" थोड़े दिन की बात है। नौकरी का पेपर है 3 महीने बाद फिर आ जाएगी। "
माताजी -" जो पेपर पास ना हुआ तो!! वहीं रखेगा उसे!! तूने उससे भी पूछा जाना चाहती थी कि नहीं। पढ़ाई तो वो यहां भी कर लेती। वहां तो तेरी वजह से गई है। "
हरीश -" ये सब उसने कहा क्या आपसे!!"
माताजी -" वो क्यूं कहेगी!! मैं समझती हूं सब । तू बस मुझे दवाई दे दे मैं सो जाऊं।"
हरीश ने मां को चाय पिलाई और दवाई दी।
अपने कमरे में गया तो सौम्या का मुरझाया हुए चेहरा अचानक आंखों के सामने आ गया।
कमरे का सूनापन उसको आज अजीब लग रहा था। पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि सौम्या के सामने ये सब बता पाए।
यूंही दिन बीतते रहे, मां की तबीयत अचानक बिगड़ी और उस दिन घर में नाश्ता नहीं बना।
जल्दी जल्दी में वो ऑफिस यूंही चला गया।
वहां लंच टाइम में दोस्तों ने चुटकी लेते हुए कहा -" अरे!! नए नवेले दूल्हे साहब। आज भाभी जी ने टिफिन नहीं दिया क्या!!"
हरीश पहले ही परेशान था, उसने बस मुस्कुराकर बात को टाल दिया ।
मां की तबीयत सही नहीं थी, मां ने फोन किया -" सौम्या बेटा!! मेरी तबियत खराब है और बिल्कुल अकेली पड़ गई तेरे बिना। कब तुझे लेकर आयेगा ये! मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा। "
सौम्या -" मां जी!! आप अपना ध्यान रखें। मैं आ जाऊंगी।"
माताजी ने हरीश को भी फोन किया - " बेटा!! मेरी तबियत ठीक नहीं। आते वक़्त सौम्या को लेे आना। करवाचौथ भी आने वाला है, ये उसका पहला त्यौहार है शादी के बाद। बिना बहू कैसा त्योहार?"
हरीश मन ही मन खुश हो रहा था, चाहता तो वो भी था कि अपनी गलती का एहसास कैसे करूं। अब त्यौहार और मां की तबीयत का बहाना मिल गया।
तुरंत सौम्या को फोन किया -" सौम्या!! अपनी किताब और सब जरूरी समान पैक कर लो। मैं आ रहा हूं आज! "
सौम्या का मन तो कबसे यही सब सुनने को तरस रहा था, सौम्या ने खुद को संभालते हुए कहा -" पर मेरी पढ़ाई!!"
हरीश -" पढ़ाई साथ बैठकर करेंगे!!"
ये शब्द सुनकर सौम्या की पलकें और मन भीग गया।
हाफ डे में ही हरीश सौम्या को लेने पहुंच गया। दोनों ने जी भर के एक दूसरे को निहारा।
सौम्या -" अब चलो भी!! इरादा ना बदल देना!!"
हरीश ने प्यार से मीठी सी चपत सौम्या के गालों पर लगाई और गाड़ी शुरू की।
घर पहुंचते ही सास बहू एक दूसरे के गले मिलकर खूब रोई।
माताजी -" वाह आज मेरा घर फिर से रोशन हो गया। त्यौहार की रोशनी आ गई। "
सौम्या -" मां जी!! आपने अपना बिल्कुल ध्यान नहीं रखा!! अब बस आराम करो आप।"
माताजी -" बेटा!! तू आ गई तो अब मैं बिल्कुल सही हो जाऊंगी। त्यौहार तो एक बहाना था मेरी बहू को घर बुलाने का! जाओ दोनों आराम करो।"
हरीश भी तब तक कमरे में सामान रखने जा चुका था। सौम्या कमरे में गई तो हैरान थी जो चीजें जहां रख कर गई थी वो सब यूंही वहां रखी थी।
हरीश ने सौम्या को देखा और उसे गले से लगाया।
दोनों खो गए त्यौहारों के बहाने मिली इस खुशी के सागर में। मिलन जो अधूरा था , अब वो त्यौहारों ने पूरा करवा ही दिया।
## त्यौहार तो दुश्मनों को भी करीब ला देते है, फिर सौम्या और हरीश तो एक जान ही थे।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👏👏👏👏
जी शुक्रिया
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