चांद को देखने उमड़ा था मोहल्ला छज्जे पर,
जिसका व्रत था वो बना रही पकवान चूल्हे पर,
छोटा बेटा भूख से तिलमिलाया,
गोद में उठाकर उसे चुप कराती,
बनाती जा रही थी पकवान चूल्हे पर,
इसको चुप करवाओ!
चांद की बाट टोहता हुआ उसका चांद,
चिल्ला रहा था छज्जे पर।
क्या पाखंड है ये,
किसने ये रीत बनाई है,
व्रत तुम रखो,
मेरी क्यूं श्यामत की घड़ी आई है।
इतना सुन बस यही बोली थी वो,
बच्चे को पकड़ को कुछ देर,
मैं बना रही हूं पकवान चूल्हे पर,
ये सुनकर कड़ाही के तेल से ज्यादा गरम हुआ,
लगाया ताव मूछों पर,
पूरी छानने की छलनी से ही उसे मारा,
जो भूखी होकर भी चांद के लिए
बना रही थी पकवान चूल्हे पर,
छलनी जिससे चांद को देखना था,
उसे ले जाना भूल गई छज्जे पर,
एक छलनी जिसके निशान कमर पर थे,
फिर भी बनाती जा रही थी,
पकवान चूल्हे पर
सोच रही थी उसकी लम्बी उम्र की दुआ मांगू,
या दम तोड़ दूं छज्जे पर,
फिर भी खुद को समेटती हुई, खाना परोस रही थी,
चांद देरी से आया इसलिए गुस्सा हो गए,
ये कहकर अब भी चांद को ही कोस रही थी छज्जे पर।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👍 👍
Bahut sundar
बहुत बहुत शुक्रिया
Please Login or Create a free account to comment.