" जय जवान जय किसान" वाले देश में नए कृषि ड्राफ्ट ने जवानों और किसानों को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
जवान अपने फ़र्ज़ की जिम्मेदारी के हाथों मजबूर है और किसान अपने परिवार की जिम्मेदारी के हाथों।
कभी भी निजीकरण से किसी आम जन का भला नहीं हुआ है।
अस्पतालों, विद्यालयों, उद्योग। यहां तक की मंदिरों में भी वी आई पी पंक्ति शुरू कर दी गईं ।
किसानों का रोष बिल्कुल सही है, अगर उनकी मां से भी प्यारी ज़मीन को उद्योग का हिस्सा बना दिया गया तो मंजर बहुत भयानक होगा ।
अब तक तो 100 में से कोई एक किसान आत्महत्या करता था, फिर हर घर से शायद एक ज़िंदा लाश मिले ।
जिन लोगों को लगता है कि किसान को फसलों के दाम तो अच्छे मिलेंगे, फिर दिक्कत क्या है।
मैं बताना चाहूंगी की ड्राफ्ट के अनुसार अब किसी भी राज्य में जाकर किसान अपने मनपसंद दाम पर फसल तो बेच सकता है; पर राज्य भी तो अपने दाम गिरा सकता है।
भूखा मरता किसान क्या नहीं करेगा। जिस दाम पर भी खरीददार मिलेगा वो मजबूर हो जाएगा बेचने पर।
फसल बुवाई से लेकर , निराई, गुड़ाई, कटाई, फिर भंडारण इस बीच आने वाली प्राकृतिक आपदाएं।
इन सबकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी ये तो किसी ने निश्चित किया ही नहीं।
आज कल इतने मंहगे खाद,बीज हो गए की छोटे किसान मजबूर है बैंक से ऋण लेने के लिए।
उसके पश्चात अगर फसल भी कुछ मुनाफे में नहीं बिकेगी तो किसान सहित उसका पूरा परिवार बेबस हो जाएगा ।
शहरों में रह रहे लोग किसानों को गलत ठहरा रहे हैं । उन्हें नहीं पता जिस वक्त ठंडी रातों में वो सोते है। उस वक्त किसान ठंडे पानी की सिंचाई कर रहा होता है अपने गेंहू के खेत में।
शहर वालों को आटा कम दाम पर मिल जाएगा, बस इसी चक्कर में वो किसानों के विरुद्ध हो गए हैं।
किसान अपने बच्चों को कर्ज़ लेकर पढ़ाता है। इतनी मेहनत करके भी बच्चों को नौकरी नहीं मिलती तो शहरों में आते हैं प्राइवेट नौकरी के लिए।
यहां आकर भी वो सिर्फ अपना ही पेट मुश्किल से पाल पाते हैं।
कोई भी किसान अपने बेटे को किसान बनाने के सपने देखने में भी डरता है।
ये बिल आने के बाद कितने ही ऐसे किसान है जिन्होंने मेहनत करके अपने बेटे को फौज और पुलिस में भर्ती करवाया । आज बाप बेटे को सामने लाकर खड़ा कर दिया सिर्फ इन बेसिर पैर के बिलों ने।
राजनैतिक लोग तो अपने घर में भी राशन का भंडार रखते हैं, और ऐसे मौकों पर अपनी राजनैतिक रोटियां भी सेकने लगते हैं।
किसान का हित कोई नहीं सोचता। किसान सिर्फ वोट मांगने का मुद्दा भर बनकर रह गए हैं।
बड़े जमींदार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा पर जो अधिकतर छोटे किसान हैं उनका क्या?
ना उनके पास इतने साधन कि अन्न का भंडारण कर पाए, ना साधन है की दूसरे राज्यों में अच्छे दाम की लालसा में घूम पाएं।
उनका क्या होगा ।
सही कहा है किसी ने
" जिसके पांव ना फटी बवाई
वो क्या जाने पीर पराई।"
किसानों को अपने बच्चों का भविष्य फांसी के फंदे पर लटकता हुए नजर आ रहा है। तभी वो इस चिलचिलाती ठंड में भी ठंडे पानी की बौछार, डंडों की मार चुपचाप सह रहे हैं।
मेरा समर्थन किसानों के साथ है, अपने हक़ के लिए लड़ने का अधिकार सबको है।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
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शुक्रिया आपका
nice
Shukriya
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