पिता से कैसा पर्दा

नए जमाने के साथ कुछ रिवाज़ भी नए जरूर हों

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Anita Bhardwaj
Anita Bhardwaj 14 Jan, 2021 | 1 min read
Family Rights Marriage

"देखो दादी!! शहर में शादी करवाना। मैं गांव में शादी नहीं करवाऊंगी। क्या फायदा हुआ इतनी पढ़ाई लिखाई का!! जब नौकरी करने के लिए भी किसी से पूछना पड़े!! सारा दिन बस घूंघट में बेहाल रहना पड़े।"- शिल्पा ने अपनी दादी सुमन जी को कहा।


सुमन जी परेशान है, आसपास की सब लड़कियों की शादी हो गई । बस सुमन ही मास्टर्स करने के बाद भी जिद्द पर अड़ी हुईं थीं।


कितने ही रिश्ते आए, पर शिल्पा ने किसी के लिए भी हामी नहीं भरी।


दादी मां को डर लगने लगा कहीं ,कुछ और बात तो नहीं!!


इसलिए सुमन के मन को टटोलने के लिए उससे शादी की बातें करनी लगी कि बेटा तुम ही बताओ फिर कैसा दूल्हा चाहिए।


शिल्पा -" दादी!! जहां मेरी पढ़ाई लिखाई में की हुई मेहनत खराब ना जाए। नए जमाने के साथ चलने वाले लोगों के घर में ब्याहना मुझे!"


सुमन जी -" ठीक है!! इस रविवार तेरी बुआ जी आएंगी दिल्ली से। कुछ लोग भी साथ आयेंगे। वैसे तो लोग राजस्थान के है पर कई सालों से दिल्ली ही रहते हैं।"


शिल्पा ने हामी भर दी!!


शिल्पा की बुआ रचना जी के साथ लड़के के माता पिता आए।


शिल्पा से कुछ सवाल किए, शिल्पा के मन की बात पूछी और रिश्ता तय हो गया।


कुछ दिनों बाद शादी भी हो गई।



शादी करके शिल्पा खुश थी कि शहर में शादी हुई है, नौकरी भी आसानी से कर पाऊंगी और कोई बेकार की रोक टोक भी नहीं होगी।


मन ही मन जाने कितने सपने संजो लिए थे!!


शादी के अगले दिन मुंहदिखाई पर शिल्पा की सासू मां कांता जी ने कहा -"बहू!! घूंघट निकाल लो!! बाहर लोग मुंहदिखाई की रसम के लिए आए हैं।"


शिल्पा ने थोड़ा सा पल्लू आंखों तक सरका लिया!!


कांता जी ने अपने हाथों से बहू का पल्लू सीने तक कर दिया।


शिल्पा हैरान थी!! शहर में इतना बड़ा घूंघट!!


फिर उसने सोचा कि मुंहदिखाई पर ऐसा होता होगा, गांव से भी रिश्तेदार आए हुए हैं। वहां तो ऐसे ही चलता है।


शिल्पा बैठ गई!! मेहमान आए और तोहफे देकर चले गए।


शिल्पा को कांता जी ने बैठकर समझाया -" देखो बहू!! तुम नौकरी करना चाहती हो तो बेशक करो! बस घर से निकलते हुए तुम्हारा पल्लू ना सरके!! यहां हमारे गांव के लोग ही रहते हैं पड़ोस में। तो अच्छा नहीं लगेगा नई बहू खुले मुंह घूमे!!"


शिल्पा के सपने , माला के मोतियों की तरह एक एक करके गिरते जा रहे थे।


रसोई की रस्म हुई, शिल्पा ने खाना बनाया।


कांता जी -" बेटा अब हम ही तुम्हारे माता पिता हैं। तुम्हें किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे निसंकोच बता सकती हो!"


इतने में शिल्पा के ससुर जी रसोई की तरफ से गुजरे। शिल्पा की सास ने आंखें निकाल कर कुछ इशारा किया।


शिल्पा को कुछ समझ नहीं आया । बातें करते करते मां जी को क्या हुआ!!!


उधर ससुर जी भी खांसी करते हुए रसोई के पास से निकले।


ससुर जी के जाने के बाद , कांता जी ने बहू को कहा -" तुम्हें सिखाया नहीं किसी ने!! ससुर जी आसपास हो तो पल्ला रखना!! उनके सामने आना नहीं!!"


शिल्पा -"मां जी!! रिश्ते के वक्त और शादी के वक्त जब सब देख लेते हैं बहू को, तो शादी के बाद ये पर्दा क्यूं!!"


कांता जी -" देखो बहू!! तुम्हें आज़ादी दी है इसका मतलब ये नहीं कि अब तुम अपने ही नियम चलाओगी। आगे से जब भी ससुर जी आसपास हो तो झट से ओट में हो जाना या पल्लू निकाल लेना!"


शिल्पा के सपनों की माला के मोती तो बिखर चुके थे।


शिल्पा ने दादी मां को फोन किया -"दादी!! यहां भी घूंघट मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा। मुझे नहीं रहना यहां!!"


दादी मां -"अरे बेटा!! नई बहू हो। घूंघट तो करना पड़ता है। अब शहर हो या गांव। ये तो अपनी सोच की मान्यता पर निर्भर है कि आपकी सोच ने भी शहर को अपना लिया या अब भी गांव के पुराने रिवाज़ घसीटने है!"


शिल्पा -" दादी मां!! मैं कितनी बार पल्लू में काम करती हुई, गिरती हुई बची हूं। किसी दिन इस पल्लू से ही मर जाऊंगी।"


दादी मां -" बस इसलिए तुझे पढ़ाया था!! तू ही तो कहती थी दादी नए रिवाज़ चलाने के लिए लंबे संघर्ष की जरूरत पड़ती है। अब तू ही हार मान गई!!"


इतने में बाहर जोर से कुछ गिरने की आवाज आई।


धड़ाम!!


हे राम!!!


शिल्पा ने झट से फोन रखा और बाहर आई।


ससुर जी को गिरा हुआ देख वो खुद घबरा कर अपनी साड़ी का पल्लू सिर पर टिकाने लगी। कभी पल्लू उल्टा, कभी सिर से सरक जाए।


इतने में ससुर जी ने आवाज़ दी, कांता कहां हो!!


शिल्पा ने दबी आवाज़ में कहा -" पिताजी!! मां तो पास के मंदिर में सत्संग में गई है।"


शिल्पा ने संकुचाते हुए ससुर जी को सहारा देकर उठाया, उनको पैर में काफी चोट आई थी।


शिल्पा ने अपने पति ऋषि को फोन किया!


ऋषि -" तुम पास के क्लीनिक ले जाओ पापा को !! तब तक मैं आता हूं।"


शिल्पा -" अरे!! मैं साड़ी के साथ घूंघट में खुद गिरती हुई रहती हूं। मैं कैसे लेकर जाऊं!! पिता जी से बिना सहारे नहीं चला जा रहा!!"


ऋषि -" यार!! उनका खून बह रहा है। तुम्हें घूंघट की पड़ी है। अभी लेकर जाओ। मैं भी निकल रहा हूं ऑफिस से। "


ऋषि ने फोन रख दिया।


अब शिल्पा असमंजस में थी कहीं सासू मां नाराज ना हो जाए।


फिर भी शिल्पा ने सूट पहना; ससुर जी को एक हाथ में छड़ी थमाई और दूसरे हाथ को अपने हाथ से सहारा देकर ले गई क्लीनिक!!


किसी चीज के टकराने से सिर पर खून बह रहा था । डॉक्टर ने 4 टांके लगाए!!


इतने में ऋषि भी आ गया!!


पापा कैसे हुआ ये सब!!


अरे बेटा!! पांव फिसल गया और चारपाई से टकरा गया।


बहू ने सहारा दिया वरना तो उठा भी नहीं जा रहा था।


खुश रहो बेटा!!


घर आए तो कांता जी हैरान, परेशान बाहर ही बैठी थीं।


बहू को यूं देखकर वो बाकी सब भूलकर आग बबूला हो गई।


बहू को ऐसे आंखें निकालकर देखा कि , बहू ने अपने दुपट्टे के पल्लू को सीने तक सरका लिया।


इतने में ऋषि बोला -" शिल्पा!! दरवाज़ा खोलो!!"


शिल्पा ने ताला खोला सब अंदर गए।


कांता जी -"ये क्या हो गया आपको!! अभी तो ठीक थे जब मैं मंदिर गई!!"


ऋषि -"मां उनको थोड़ा आराम करने दो!! शिल्पा तुम दूध ले आओ!!"


कांता जी -" तुम रुको जरा!! नई बहू हो। तुम्हें कहा था ना हमारे यहां साड़ी ही चलती है ये सूट पहनकर , गले में दुपट्टा डालकर क्या साबित करना चाहती हो! ससुर बैठे हैं उनका तो कोई पर्दा रखो !"


ऋषि कुछ बोलता इतने में शिल्पा ही बोल पड़ी, " मां जी !! जब ससुर जी मेरे पिता समान हैं तो पिता से कैसा पर्दा!!

उनको चोट लगी तो कोई नहीं आया पड़ोस से।


मैं ही उनको लेकर गई थी।


पर्दे के चक्कर में रहती तो उनका कितना खून बह चुका होता!!"


तभी ससुर जी बोल पड़े , " बेटा!! तुम जाओ मैं समझ दूंगा!"


फिर ऋषि ने मां को बिठाया -" मां!! हम गांव से शहर इसलिए आए थे कि गांव में संसाधन नहीं थे। आप ही तो कहती थी कि गांव में तो घर का काम के अलावा कुछ नहीं सीखा। शहर में तो 10 चीजे सीखो कोई रोक टोक नहीं!!


तो अब आप क्यूं ये रोक टोक कर रही हो!!


ससुर जी -" तुमने कौनसा अपनी सास की कोई बात मानी थी, आ गई थी ना मेरे साथ शहर!!


जब बहू आदर सम्मान दे रही है तो तुम्हें क्या समस्या है।


आज उसकी वजह से ही बच गया मैं!!


तुम उसे जबरदस्ती बांधोगी तो एक दिन तो छूटने की कोशिश भी करेगी ही ना!!


तब क्या करोगी!!"


कांता जी -" ठीक है!! मुझे क्या!! दुनिया तुम्हें ही कहेगी की बहू कैसी दनदनाती खुले सिर घूम रही है। तुम ही देना जवाब!!"


ससुर जी -" हां दे दूंगा! मेरी बेटी मुझसे पर्दा नहीं करती तो बहू भी तो बेटी ही है ; वो भी नहीं करेगी!!"


कांता जी बस अपना सा मुंह सिकोड़ कर रह गई।

इतने में शिल्पा भी ससुर जी के लिए दूध और सासू मां के लिए चाय ले आई।


ससुर जी -" बेटा!! तुमने आज मुझे सही टाइम पर सहारा दिया!! अब तुम पर्दा नहीं करोगी मुझसे!! जैसे अपने पिता से बेखौफ होकर सब कहती थी, मुझसे भी कह सकती हो!"


शिल्पा ने सासू मां को देखा फिर ऋषि को देखा।


ऋषि ने आंखें मटकाकर इशारे में कहा -"जियो"!!


शिल्पा के बिखरे सपनों के मोती जैसे फिर से किसी ने माला में पिरो दिए हो , उसे ऐसा लगा।


और खुशी में सासू मां और ससुर जी के पैर छुए।



*** दोस्तों!! हम जहां रह रहे हो, हमारी सोच को भी उसके अनुरूप ढालना होगा वरना हर वक्त एक द्वंद्व चलता रहेगा।

जब सास ससुर धर्म के माता पिता होते है तो वो बहू को भी बेटी की तरह ही रखे। तभी उन्हें उचित मान सम्मान मिल पाएगा।


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धन्यवाद।


आपकी स्नेह प्रार्थी


अनीता भारद्वाज

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Anita Bhardwaj

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