कन्यादान
जिस रिश्ते की शुरुआत ही दान से हुई,
उसमें मैं सम्मान कैसे पाऊंगी बाबा,
मेरी जगह जो तुम्हारे दिए दान दहेज को पूछेंगे,
उनके घर मैं कैसे रह पाऊंगी बाबा!
हर त्योहार पर शगुन के बहाने,
महंगे तोहफों की आस लगाए रहेंगे,
क्या वो दान में दी हुई,
तुम्हारी बेटी की इज्जत कर पाएंगे बाबा!
दान पेटी में डाले हुए रूपए,
चले जाते हैं अंधेरे पिटारे में,
तुम्हारी दान दी हुई बेटी के सपने भी,
यूंही पड़े मिले मिलेंगे उनके घर के किसी किनारे में बाबा!
ये दान दी हुई कन्या का तमगा
मेरे माथे से हटा दो बाबा,
कन्यादान की जगह कन्याविवाह
कहने की रस्म चला दो बाबा!
मेरी बेटी शादी के बाद भी,
मेरी बेटी ही रहेगी,
ये कहकर मेरा मान बढ़ा दो बाबा,
कन्यादान की जगह
कन्याविवाह कहने की रस्म चला दो बाबा!!
#1000poems
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत सुंदर रचना
जी शुक्रिया
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