प्यार के पल

पति-पत्नी का रिश्ता आपसी समझ और प्रेम और विश्वास पर टिका होता है। पर जब विश्वास दरकता है तो यही प्रेम कमजोर पड़ने लगता है।

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anamika sharma
anamika sharma 20 Mar, 2020 | 1 min read

"वो पहली नजर, हल्का सा असर ।न जाने क्यो मुझको करता यूँ बेकरार । हम आपके, आपके है कौन? "

बैकग्राउंड मे रोमांटिक म्यूजिक बज रहा था । स्वीटी मेन्यू कार्ड को पलट रही थी पर उसकी नजर सामने बैठे अपने पति रोहित पर टिकी हुई थी । आज शादी की आंठवी वर्षगांठ मनाने दोनो रेस्टोरेंट आए थे । सुबह स्वीटी मंदिर जाना चाहती थी लेकिन रोहित को सुबह जल्दी निकलना था तो वह नही जा पाएं । रोहित ने शाम को 4 बजे तक आने का वादा किया तो उसने सोचा चलो कोई बात नही शाम को लॉन्ग ड्राइव पर चले जाएंगे जिसे वह बहुत मिस कर रही थी ।पर रोहित लेट हो गया और आते आते 8 बज गए ।

आते ही रोहित ने सॉरी बोलते हुए डिनर पर बाहर चलने की रिक्वेस्ट की तो न चाहते हुए भी वह तैयार हो गई क्योंकि सुबह से इंतजार करते करते अब उसका मुड भी खराब हो चुका था और थकान भी होने लगी थी ।और यहा आकर भी वही हुआ जिसकी उसे अंदाजा था । रोहित फोन में सर घुसाए अपने काम मे लगा हुआ था और यह रोमांटिक गाना स्वीटी की उम्मीद को बढा रहा था कि इतने रोमांटिक माहौल में इंसान फोन में कैसे बिजी रह सकता है ।

तभी वेटर सर पर खड़ा हो गया, "मेन कोर्स में क्या लेंगे सर "

"स्वीटी ऑर्डर दो! तुम्हे तो पता है न कि मैं क्या लूंगा और तुम अपने पसंद से अपने लिए ऑर्डर दे दो "रोहित ने कहा और वह अपने फोन में बिजी हो गया ।

"एक दाल फ्राय और चपाती विदाउट बटर और वन पनीर टिक्का विदाउट ग्रेवी ।"स्वीटी ने ऑर्डर दिया और बैठे-बैठे रेस्टोरेंट को निहारने लगी| एक कॉर्नर टेबल पर यंग कपल हाथो में हाथ डाले बैठा था दूसरी तरफ एक फैमिली बैठी थी जो अपने बच्चो को शोर न मचाने और सही से बिहेव करने की हिदायत दे रहे थे ।कुछ बच्चे एक्वेरियम के पास खड़े होकर रंग बिरंगी मछलियों को निहार रहे थे । पूरे रेस्टोरेंट में बाते सुनाई पड़ रही थी । बस हमारी टेबल पर खामोशी पसरी हुई थी।

कभी-कभी स्वीटी को लगने लगता कि उसने नॉर्मल इंसान से तो शादी की है या रोहित को चुप रहने की बिमारी है? आज शादी की आंठवी वर्षगांठ पर मैं अपने पति के साथ एक अजनबी की तरह इस रेस्टोरेंट में पूछ रही हूँ एक सवाल, "हम आपके है कौन ?"

कहाँ चली जाती है वो गर्मजोशी, वो अठखेलियाँ, आँखों ही आँखों में होने वाले इशारे, वो प्यार की मदहोशी, सबके बीच होते हुए भी गानों के माध्यम से हाले दिल बयान करना । आज भी वह पल कुछ इस तरह से याद है जैसे कल की ही बात हो ।सगाई के बाद कुछ मुलाकात में ही एक दूसरे के कितने करीब आ गए थे हम। छ महीने भी इंतजार नही हो रहा था रोहित को । शादी के बाद भी एक पल की दूरी बर्दाश्त नही कर पाते थे रोहित, यहाँ तक की डिलीवरी के लिए भी पीहर भेजने से मना कर दिया था और कहने लगे "मैं तुम्हे हर पल अपनी आँखों के सामने रखना चाहता हूँ ।"

सभी तरह-तरह की बाते बनाते ,मेरी कुछ सहेलियाँ तो यहा तक कहती "स्वीटी रोहित को तुझ पर भरोसा ही नही है तभी तो अकेला नही छोड़ता " पर स्वीटी को तो बहुत अच्छा लगता था कि उसका पति उससे इतनी मोहब्बत करता है और पल भर भी दूर नही रह पाता । लोग बाते बनाते रहे और स्वीटी इन मोहब्बत के पलों को खुशी से जीती महसूस करती रही । पर पता नही किसकी नजर लग गई उनके रिश्ते को ।

प्रेग्नेंसी मे थोड़ी कॉम्प्लिकेशन तो पहले से ही थी और शायद इसी वजह से रोहित उसे एक पल को अकेला नही छोड़ते थे । पर जैसे जैसे समय करीब आता गया कॉम्प्लिकेशन और बढ गई । डिलीवरी वाले दिन डॉक्टर ने किसी एक को बचने की संभावना जताई तो रोहित ने बिना किसी विलंब के मुझे बचाने की गुजारिश की । मैं तो बच गई पर मेरा बच्चा! चुपके से स्वीटी ने भीग आई आँखों को पोंछा । और अपना ध्यान खाने में केन्द्रित करने की कोशिश करने लगी।

खाना खत्म हो चुका था तो बिल अदा कर के दोनो बाहर आ गए ।रोहित गाड़ी स्टार्ट करने लगा तो स्वीटी को भी बैठना पड़ा लेकिन वह अभी घर नही जाना चाहती थी पर कुछ बोली नही । बच्चे को खोने के बाद तो दोनो को एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए था पर कुछ तो दुखी मन ऊपर से लोगो की बाते "माँ के पास डिलीवरी के लिए भेज देता तो सही होता न बच्चा जाता और सब अच्छे से होता ,अब तो स्वीटी कभी माँ नही बन पाएंगी ।" और यह सब सुनते-सुनते मेरे ही दिल मे एक दूरी आ गई । मुझे भी लगने लगा कि कहीं न कहीं इसके लिए रोहित जिम्मेदार है । और इस बात को रोहित भी महसूस करने लगा की मैं भी लोगो की बातो से सहमत हूँ ।बस तब से रोहित ने अपने आप को काम मे झोंक दिया ।शायद दिल बहुत छलनी हो गया था और मरहम भी नही था ।मरहम लगाने वाला ही घाव दे तो क्या किया जाए ।

पर कहते है न वक्त एक बहुत बड़ा मरहम है ।धीरे-धीरे मेरे दर्द कम होने लगे और दर्द के कम होने से कुछ और सोचने की व समझने की शक्ति जागी तो समझ आया गलती तो किसी की नही थी बस हालात ही गलत थे ।तब से मैं अपने रोहित को फिर से पाने की कोशिश में लगी हूँ पर शायद इस बार भी नाकाम ही रह जाउंगी । तभी झटके के साथ गाड़ी रूकी और स्वीटी अपने ख्यालो से बाहर आई ।

"क्या हुआ रोहित ? घर तो अभी दूर है।"

रोहित ने गेट खोलकर हाथ आगे बढाया, "चलो आज यहाँ से पैदल चलते है आइस्क्रीम पार्लर तक बहुत  मन हो रहा है आईसक्रीम खाने का।"

स्वीटी मुस्कुराई और दोनों चुपचाप चलने लगे।

कुछ देर की खामोशी के बाद रोहित धीमे से हँसा और बोला,"क्या बात है स्वीटी? गले में जो अटक रहा है उसे कह क्यूँ नहीं देती?मन हल्का कर लो। कह भी दो।"

स्वीटी के चेहरे पर हल्की बूदें उभर आईं और होंठों पर थरथराहट ।बमुश्किल बस इतना कह पाई,"जब यह समझ गये कि कुछ कहना है तो यह भी समझ ही गये होंगे की क्या कहना है?"

"हाँ ,हम उस बारे में बात कर सकते है पर पहल तुम्हें करनी होगी ।गलतफहमियां तुम्हें ही बहुत है। " रोहित ने सीधे स्वीटी की आँखों में झांका।

"रोहित मैं मानती हूँ ,मैंने गलत समझा तुम्हें।पर हालात ही से ऐसे थे।मैं क्या करती?उस वक्त टूट चुकी थी और खोखली हो गई थी।दिमाग सुन्न हो गया। सही गलत की समझ ही खत्म हो गई । पर तुम्हारे प्यार और देखभाल ने ही संभाला मुझे। उस हालात से तुम ही थे जो मुझे बाहर ला पाएं और तब अहसास हुआ कि मैंने अनजाने मे ही सही कितना दिल दुखाया है तुम्हारा।सच कहूँ उस हादसे के बाद एक पल भी माफ नहीं कर पाई खुद को ऊपर से तुम्हें भी अपने से दूर छिटक दिया।भूल ही गई खोया सिर्फ मैंने ही नहीं तुमने भी तो था।दिल से तुम भी तो टूटे थे। पहली बार पिता बनने का अहसास भी तो उतना ही अनोखा होता है जितना पहली बार माँ बनना।जब मुझे तुम्हें संभालना चाहिए था न जाने कैसे इतनी स्वार्थी बन गई मैं की तुम्हारा दर्द तुम्हारी तकलीफ़ और तुम्हारे अंदर ही अंदर बहते आँसू देख ही नहीं पाई। पर अब मैं थक गई तुमसे दूर रहते। मुझे माफ कर दो रोहित। प्लीज़ पहले वाले रोहित बन जाओ।प्लीज़।" अनगिनत आँसू और हिचकियों से बंधी स्वीटी उसके सामने सिर झूकाए रोये जा रही थी।

रोहित ने अपने हाथों से स्वीटी के आँसू पोंछते हुए उसे गले से लगा लिया।

"बस अब और नहीं तुम्हारे चेहरे पर अब एक और आँसू बर्दाश्त नहीं। बहुत रो लिए हम ।चलो एक नयी शुरुआत करते है।भूल जाओ जो हुआ। " रोहित की आवाज़ भीगी थी।

दोनों एक दूसरे के हाथों को थामे आईसक्रीम खाते हुए चले जा रहे थे। पतझड़ के कारण झड़ चुके पत्ते उनके कदमों में बिखरे थे।मौसम थोड़ा रूमानी सा बनने लगा था। पतझड़ में भी बसंत के आगमन की  दस्तक हो चुकी थी।

धन्यवाद

मौलिक एवं स्वरचित

अनामिका शर्मा।

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