स्टॉप को बंद करके मैने उस पर से पतीला उतारा..सूप बन चुका था उसकी भाप से तो यही अंदाज़ा लग रहा था, उस सूप को मैने पास पड़े काँच के बर्तन में पलट लिया और उस को उठाकर मैं पास की लकड़ी की मेज़ पर रखने जा रहा था तभी वो टूट गया और सारा सूप नीचे ज़मीन पर गिर गया। ज़मीन पर पहले ही इतनी धूल थी कि सारा सूप धूल के साथ एक पल में मिल गया मानो जैसे कोई प्रेमी, प्रेमिका से बहुत वर्षों बाद मिल रहा हो।
तभी बाहर से किसी के हलचल की आवाज़ आई..मैने टॉर्च उठाई और बाहर की तरफ़ गया। टॉर्च चालू की पर चली ही नहीं शायद बैटरी ख़तम हो गई थी, उस पर एक हाथ मारा तब चली।
इतने अँधेरे में जब बाहर देखा, तो टॉर्च की रोशनी में "एक जंगली जानवर" दिखा, जो मेरी "40 गज" के प्लाट में हुई खेती को पूरी तरह खा चुका था "हर बार की तरह" और बची-कुची फ़सल खराब कर चुका था, अब उसे भगाकर भी करता क्या ???
कभी-कभी मैं बहुत थक जाता था इस जिंदगी से, इस गरीबी से..खुद से, रोज़ लड़ता था पर क्या करता ? कभी-कभी सँभालना मुश्किल होता है खुद को,कि क्या करें क्या ना करें..क्या ग़लत है, क्या सही ??
मैं कुछ पैसे इक्कठे करके "एक नई रस्सी" लाया था सूप बनाने से पहले, शायद अब वो रस्सी ही बची थी जो मेरी "आखरी उम्मीद" थी जो मेरे अब काम आने वाली थी !!
मेरे हाथ में रस्सी थी "मैने एक सिरा उस पेड़ पर फेंका जो पेड़ मेरे इस पुराने टूटे घर से सट्टा हुआ था" पेड़ मजबूत है इसका मुझे यक़ीन था, मुझे पता था "यहाँ काम हो जाएगा" टॉर्च को मैने पीछे दरवाजे पर रख दिया, टॉर्च की रोशनी नीचे की तरफ़ पड़ रही थी।
अचानक उसी टॉर्च की रोशनी "मेरे मुँह" पर पड़ी, "बाबा क्या कर रहे हैं आप? " बेटा कुछ नहीं बस तुम्हारे लिए "झूला" लगा रहा था, तुम्हारी इच्छा थी ना कि तुम्हें झूला झूलना है...तुमनें कुछ खाया भी नहीं था आज सवेरे से, अब भी जब मैं आया तो तुम सो चुकी थी तो सोचा अभी ही "इस नई रस्सी का झूला पेड़ पर बांध दूँ ताक़ि कल सुबह जब हो तो तुम आराम से झूल सको"।
इतना कहकर मैं, बस चुप हो गया "मेरी 8 साल की बेटी" जो ये सुनकर ख़ुश हुई उसका अंदाजा मैं, उसके चहरे की मुस्कान से लगा सकता था..वो भले ही अभी छोटी थी पर उसकी आँखें हल्की-हल्की ख़ुशी से नम थी, जो बहुत कुछ वयां कर रही थीं।
- अक्षय कुमार
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