प्रकृति की सुंदरता के झमेले में पड़ना मतलब , एक ऐसी नौका में सवारी करना जिसकी मंजिल दूर दराज भी आंखों के झरोखों को रोकने की चेष्टा करें।।।
सुन्दर उपवन से लेकर , वीरान में दिखती एक छोटी सी दुनिया।।
एक कविता के माध्यम से चंद पंक्तियां जोड़ना चाहूंगा -
" हे मन उपवन , क्यूं मस्त - मगन
नभ के आंगन में खिलती है।
किस ओर चली , चलती ही गई।
ऐ तृप्त पवन , सबके तन - मन।।
हे वृष्टि सुमन , अब तू ही बता ।
क्यूं अमिय धार सी बहती है।।
अब रुक भी जा, दिल को ना सता।
क्यूं मधुर गान कर , मचलती है।।
मन चंचल हो उठता है, जब इस धरा की सुंदरता को देखने का अवसर मिलता है।।
गहराइयों में तांडव कर रही तेज बारिश की बूंदों को समेटे हुए झर - झर झरते झरने , ऐसा प्रतीत होता है -
"वास्तव में अंतर्मन को यहीं विचरण के लिए छोड़ दिया जाए"
प्रकृति का स्पर्श रोग , द्वेष भावना सबको दूर कर जाती है।
मैंने ऐसी दृश्य सिर्फ़ मन के आंगन में देखी होगी शायद।
मैंने एक झलक ऐसे भी देखी इस अद्भुत कलाकारी में - प्रकृति का अभिशाप भी वरदान साबित हो जाया करते है...
जब आस - पास दिव्य योग का मंज़र दिख रहा हो।
अर्थात - सूखी टहनियां भी इस चमत्कार में चार चांद लगा रहे है।
मैं कुछ इस तरह मन के बादलों के बीच इस रहस्य को उजागर करने की कोशिश में लीन था।
पेड़ों के झरे हुए पत्ते ये बता रहे थे ,
अगर उनकी जगह कोई और भी होता तो उस गहराई में समा जाना चाहता ,
जहां वे झरनों के बीच अपनी दिनचर्या को बिताना चाहते हो।
शायद ये पहली दफा में मोहब्बत के रंग थे, जो उनकी ओर आज भी मुझे आकर्षित करते है।
धन्यवाद् ।।।
~AKHILESH UPADHYAY
@_JUST_AKHI_
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Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
आपकी रचना बेहतरीन होती है।
हर रचना masterpiece सहेजने लायक.. आपकी कई रचनाये मेरी notebook में save है
😁😁😁😁
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