ज़िन्दगी के पल और उसमे खुशियों के समत्व का प्रभाव ना हो , बेबाक सा लगता है।
दरअसल हम खुद ही मान लेते है कि इससे अच्छा अवसर हमारे लिए नहीं है और अंततः इसमें सत्यता का भी समूल अंश होता है।
ऐसे ही बचपन के वो दिन जब मुझे लड़कियों की ज़िन्दगी, उनका रहन - सहन , तौर - तरीकों में कुछ न कुछ मेरे अंतर्मन को उजालों से भर देता...
मैं भी सोचता था -
वाह ! " कितना अच्छा है ," इन्हे सब देवी का रूप मानते है"।
बचपन में माता - पिता के संस्कारों की देन थी - छोटी सी उम्र में ही मैंने रामायण, महाभारत और भगवद्गीता के कुछ अनमोल रत्न ग्रहण कर लिए थे ।
इन्हीं ज्ञान का कुछ चटपटा प्रभाव मेरी छोटी सी नटखट बुद्धि में पड़ रहा था,
मैं सोचता था - काश ! मैं भी एक कन्या होता तो मेरे कितने मज़े होते ...
सबसे ज्यादा जलन मुझे तब होता ता जब नवरात्रि - पूजन अवसर पर कन्याओं की पूजा की जाती थी...
मेरी बहने भी मुझे इस बात के लिए चिढ़ाती थी।।
उनका वो गीत संगीत में रुचि होना , इनके खेलो के अजीब से नियम बेहद पसंद थे मुझे ,
कभी - कभी तो मुझे खुद सोचने पर विवश होना पड़ता था -
क्यों ! मैं ऐसा हूं ।।।
हा हा हा.....
उनका हांथो में मेहंदी लगाना और मुझे ये कहकर टाल देना की लड़के मेहंदी नहीं लगाया करते ।
उन दिनों सब कुछ बेहतर तरीके से चल रहा था लेकिन मैं उस उम्र में मैं खुद से संतुष्ट नहीं था ,
ईश्वर ने सबको एक जैसा नहीं बनाया है , इस ज्ञान से अवगत हुए तो पता चला वास्तव में मेरी ज़िद सही नहीं थी।।
भावार्थ -
हमारे देश में एक प्रथा सदियों से चली आ रही है और वो प्रथा है बच्चे के रूप में लड़का चाहने की ...
जहां आशीवार्द भी सेक्सिस्ट होता है,
"दूधो नहाओ पूतो फलो "।।।
कई बार तो इन्हे कोख़ में दफ़न कर दिया जाता है , जो बच जाती है उन्हें दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया जाता है.....
एक पंक्ति के माध्यम से व्यक्त करना चाहूंगा -
( एक लड़की की मनोदशा का चित्रण )...
दानव दहेज़ का बना है
सबके लिए काल ,
क्यों बेंच रहे हो यहां
पैसों के लिए लाज .....2
नाज़ - ओ अदा से मुझको भी पाला गया वहां ,
फिर दे दिया जहर भरा प्याला मुझे वहां ।
रोटी के चंद टुकड़ों पर करती रही सवाल...
क्यों बेंच रहे हो यहां
पैसों के लिए लाज .....2
कुछ जल गई ,जलाई गई
है अभी बाकी ..
कुछ मरने को तैयार है
कुछ ले गई फांसी,
इस अजनबी संसार से करती रही पुकार...
क्यों बेच रहे हो यहां
पैसों के लिए लाज.....
क्यों बेंच रहे हो यहां
पैसों के लिए लाज ।।।
समाज की कुरीतियों के दर्शन मात्र से सभी के अंतर्मन में
लड़कियो के प्रति हीनभावना उत्पन्न हो जा रही है,
वास्तविकता से सब अवगत है।
बस आशा करते है , अब ये भेदभाव बंद हो ।
सब सम्मान और अधिकार के अधिकारी है , सबको उनका उचित स्थान मिलना चाहिए।।
इन्हीं सब मार्मिक घटनाओं के चित्रण में मैंने सीखा -
ईश्वर ने सब कुछ ऊपर से लिख कर हमें भेजा है , हम बस जीव मात्र अपनी आकांक्षाओं के मद में चूर होकर उन्हें ठेस पहुंचा रहे है...
आशा करते अगर ईश्वर ने मेरी बचपन की ख्वाहिश को अगले जन्म में पूरा किया तो मैं कोख में मरना पसंद नहीं करूंगा "
जीना चाहूंगा और अंततः सब कुछ ख़ुशी ख़ुशी हो इसकी कामना करूंगा।।
धन्यवाद्।✍️✍️✍️✍️
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~Akhilesh upadhyay
Insta @_just_akhi_
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👍
बेहतरीन
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद आप सब का।
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