मैं शिक्षक हूं

A poem about teachers' duties.

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Ajay goyal
Ajay goyal 04 Sep, 2022 | 1 min read

मैं शिक्षक हूं, शिक्षा की अलख जगाने निकला हूं

कुछ काठ के उल्लू समझे है कि, मैं उन्हें पढ़ाने निकला हूं

गुरुओं से जो ज्ञान मिला, मैं उसे बांटने निकला हूं

वैर, द्वेष की जो है खाई, मैं उसे पाटने निकला हूं 

आडंबर से दूर हूं मैं, ना किसी धर्म से नाता है

मैं उसका केवल सेवक हूं, वो सर्वस्व विधाता है।

अंधियारी गलियों में शिक्षा की, मशाल जलाने निकला हूं

शिक्षा का है क्या महत्व, यह कमाल दिखाने निकला हूं।

मैं शिक्षक हूं...


ठुकराए है जो अपनों से या अपनों से दूर हुए

शिक्षा के अभाव में जो खुद से ही मजबूर हुए

ठगा हुआ है जो वर्षों से, और कर्ज में डूबा है

जान सका न साहूकार का, क्या, कैसा मंसूबा है

कागज की शब्दित रेखाओं का, जाल बताने निकला हूं

शिक्षा का है क्या महत्व....

मैं शिक्षक....


मन में हो घनघोर विषमता या मस्तक विषाद की रेखा हो

जीवन भर जो घिरा दुखों से, जिसने सुख न देखा हो

दो जून की रोटी खातिर, कई जूनों तक है काम किया

बहा पसीना धरा को सींचा, क्षण भर भी न आराम किया

उसके खूँ का भी रंग, है लाल बताने निकला हूं

शिक्षा का है क्या महत्व...

मैं शिक्षक हूं...


कश्यप, वाल्मीकि, संदीपन और रामानुजन भी यहीं हुए

 उच्च शिखर शिक्षा क्षेत्र में, सब श्रेष्ठ जन ने यहीं छुए

नमन वेदव्यास को करता, महाभारत जैसा ग्रंथ लिखा

विश्व गुरु ये भारत वर्ष , जहां तुलसी जैसा संत हुआ

शिक्षक दिवस के मौके पर, मैं धमाल मचाने निकला हूं

शिक्षा का है क्या ...

मैं शिक्षक हूं...













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