डॉ.मार्टिन लूथर किंग

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Abhishek Singh Tomar
Abhishek Singh Tomar 17 Sep, 2019 | 1 min read

आधुनिक युग के महामानव डॉ.मार्टिन लूथर किंग -

 

डॉ-मार्टिन लूथर किंग जूनियर आधुनिक युग के एक महत्त्वपूर्ण शख्स थे। उनके विचारों और भाषणों ने जहाँ जनमानस को झकझोरकर रख दिया, वहीं एक पीढ़ी को जागरूक बनाने में भी योगदान दिया। अपने साहस और निस्स्वार्थ समर्पण भाव से उन्होंने जो आंदोलन शुरू किए, उनकी वजह से अमेरिकी समाज की संरचना में महत्त्वपूर्ण बदलाव आए। उन्होंने निष्ठापूर्वक तेरह वर्षों तक जन-अधिकारों के पक्ष में विभिन्न गतिविधियों का संचालन किया। अपने करिश्माई नेतृत्व की क्षमता से उन्होंने देश और दुनिया के स्त्री-पुरुषों, बच्चों, युवाओं और वृद्धों के मन में आशा का संचार किया।


जन्म एंव परिवार -

 

मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जन्म 15 जनवरी, 1929 को दोपहर 501, ऑबर्न एवेन्यू, एन-ई-, अटलांटा, जॉर्जिया में हुआ। प्रसव काल के चिकित्सक का नाम डॉ- चार्ल्स जॉनसन था। मार्टिन लूथर किंग जूनियर रेवरेंड मार्टिन लूथर किंग सीनियर एवं एलबेटो विलियम्स किंग के प्रथम पुत्र और दूसरी संतान थे। इस परिवार में क्रिस्टिन और रेवरेंड अल्फ्रेड डेनियल विलियम्स किंग का भी जन्म हुआ।

 

मार्टिन लूथर किंग जूनियर के नाना का नाम रेवरेंड एडम डेनियल विलयम, इबेनेजर बैपटिस्ट चर्च के सेकंड पेस्टोर और नानी जेनी पार्क्स विलियम्स थीं। उनके दादा का नाम जेम्स अल्बर्ट और दादी का नाम डेलिया किंग था।

 

मार्टिन लूथर किंग जूनियर का विवाह फोरेटा स्कॉट से 18 जून, 1953 को हुआ। फोरेटा स्कॉट के पिता का नाम ओबेडिया और माता का नाम बर्नीस मेकमरी स्कॉट था। विवाह समारोह का आयोजन स्कॉट परिवार के मेरियन, अलबामा में स्थित घर में हुआ था।

 

किंग दंपती की चार संतानें हुईं -


योलांदा डेनिस (17 नवंबर, 1955, मोंटगोमरी, अलबामा)

मार्टिन लूथर III(23 अक्तूबर, 1957, मोंटगोमरी, अलबामा)

डेक्स्टर स्कॉट (30 जनवरी, 1961, अटलांटा, जॉर्जिया)

वर्निस अलबर्टीन (28 मार्च, 1963, अटलांटा, जॉर्जिया)

 

शिक्षा -

 

छह वर्ष की वैधानिक आयु तक पहुँचने से पहले पाँच वर्ष की आयु में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने स्कूली शिक्षा की शुरुआत की। उन्हें अटलांटा के योंग स्ट्रीट एलीमेंटरी स्कूल में दाखिला दिया गया। जब उनकी उम्र का पता चला तो छह वर्ष की आयु पूरी होने तक उन्हें पढ़ाई जारी रखने की अनुमति नहीं दी गई। योंग स्कूल के बाद उन्होंने डेविड टी- हावर्ड एलीमेंटरी स्कूल में पढ़ाई की। उन्होंने अटलांटा यूनिवर्सिटी लेबोरेटरी स्कूल और बुकर टी- वॉशिंगटन हाई स्कूल में भी पढ़ाई की। हाई स्कूल में लाए गए अच्छे अंकों के कारण उन्हें बुकर टीवॉशिंगटन से औपचारिक ग्रेजुशन किए बिना ही मोरे हाउस कॉलेज में दाखिला मिल गया। नौवीं और बारहवीं कक्षा की पढ़ाई नहीं करने के कारण पंद्रह साल की उम्र में ही उन्हें मोरे हाउस कॉलेज में दाखिला मिल गया। सन्1948 में उन्होंने मोरे हाउस कॉलेज से समाज-शास्त्र में बी-ए- की डिग्री हासिल की। उसी साल उन्होंने चेस्टर, पेनसिल्वेनिया में“ रोजर थियोलॉजिकल सेमिनरी में दाखिला लिया।“ रोजर के साथ-साथ उन्होंने पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में अध्ययन भी जारी रखा। उन्हें वरिष्ठ कला का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने दीक्षांत समारोह में भाषण भी दिया। सर्वश्रेष्ठ छात्र के रूप में उन्हें ‘पेरल प्लाफनर पुरस्कार’ दिया गया और अपनी पसंद के किसी विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए उन्हें जेलेवीस“ रोजर फेलोशिप मिली। सन् 1951 में“ रोजर से उन्हें बैचलर ऑफ डिविनिटी डिग्री मिली। सितंबर 1951 में किंग ने बोस्टन विश्वविद्यालय में थियोलॉजी का अध्ययन शुरू किया। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया। उनका शोधपत्र ‘ए कंपेरिजन ऑफ द कॉन्सेप्शंस ऑफ गॉड इन द थिंकिंग ऑफ पॉल टिलिच एंड हेनरी नेल्सन वीमन’ 1955 में पूरा हुआ और 5 जून, 1955 को उन्हें पी-एच- डी- की डिग्री प्रदान की गई।


कर्म जीवन -

 

मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने क्रिश्चियन मिनिस्ट्री में प्रवेश किया और उन्नीस वर्ष की उम्र में, फरवरी 1948 में उन्हें अटलांटा (जॉर्जिया) में स्थित एबेनेजर बैपटिस्ट चर्च में नियुक्त किया गया। उन्हें एबेनेजर बैपटिस्ट चर्च में सहायक पेस्टर के पद पर नियुक्त किया गया। बोस्टन विश्वविद्यालय में अपना अध्ययन पूरा कर लेने के बाद उन्होंने अलबामा के मोंटगोमरी में स्थित डेक्सटर एवेन्यू बैपटिस्ट चर्च का आमंत्रण स्वीकार कर लिया। वह सितंबर 1954 से नवंबर 1959 तक डेक्स्टर एवेन्यू बैपटिस्ट चर्च में पेस्टर के पद पर रहे। वहाँ से त्यागपत्र देकर वह ‘आउबर्न क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस की गतिविधियों का संचालन करने के लिए अटलांटा चले गए। वर्ष 1960 से अंतिम समय 1968 तक वह एबेनेजर बैपटिस्ट चर्च में अपने पिता के सहायक पेस्टर रहे। डॉ- किंग जन-अधिकार आंदोलन की प्राण-शक्ति थे। उन्हें मोंटगोमरी इंप्रूवमेंट एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। इसी संस्था की अगुवाई में सन् 1955 से 1956 तक (381 दिन) ‘मोंटगोमरी बस बहिष्कार अभियान’ सफलतापूर्वक चलाया गया था। जन-अधिकार आंदोलन में भागीदारी के चलते डॉ- किंग को तीस बार गिरफ्रतार किया गया। 1957 से 1968 तक वह ‘आउबर्न क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस’ के संस्थापक अध्यक्ष थे। वह नेशनल संडे स्कूल और नेशनल बैपटिस्ट कन्वेंशन की बैपटिस्ट टीचिंग यूनियन कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे। वह कई राष्ट्रीय एवं स्थानीय बोर्डों के निदेशक और कई संस्थाओं तथा एजेंसियों के ट्रस्टी भी थे। उन्हें अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एवं साइंसेज सहित कई प्रसिद्ध संस्थाओं ने अपना सदस्य चुना था।


मृत्यु -

 

डॉ- किंग की हत्या 5 अप्रैल, 1968 को गोली मारकर उस समय कर दी गई, जब वह टेनिसी के मेंफिस में स्थित लोराइन मोटल की बालकनी में पड़े थे। डॉ- किंग मेंफिस में सफाई कर्मचारियों के प्रतिरोध आंदोलन में मदद करने के लिए पहुँचे थे, जो कम वेतन और नारकीय कार्यस्थल के माहौल का विरोध जता रहे थे। डॉ- किंग की हत्या के आरोप में जेम्स अर्ल रे को 8 जून, 1968 को लंदन में गिरफ्रतार किया गया और अदालत ने उसे 99 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई।

 

8 दिसंबर, 1999 को मेंफिस में मुकदमे का फैसला सुनाते हुए बारह सदस्यीय जूरी ने डॉ- किंग की हत्या की साजिश के लिए लॉयड जोवर्स और कई सरकारी एजेंसियों को दोषी करार दिया।

 

9 अप्रैल, 1968 को डॉ- किंग की अंत्येष्टि हुई। एबेनेजर बैपटिस्ट चर्च और मोरे हाउस कॉलेज परिषद् में शोकसभा का आयोजन किया गया। अमेरिका के राष्ट्रपति ने एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया और राष्ट्रीय झंडे को झुका दिया गया।

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