मोहन नाम था उसका, यथा नाम तथा गुण द्वारकाधीश के मंदिर में मुरली बजाता.. घर बार का कोई पता ना था अनाथ था द्वारकाधीश ही उसके सब कुछ थे और उनका मंदिर ही उसका आसरा था | यूँ पूरे गाँव भर को जानता था वो लेकिन पहचानता सिर्फ एक को था वो थी राधा देवदासी मृदुला की बेटी राधा | सुबह शाम आरती के बाद मोहन की मुरली की धुन पर द्वारकाधीश के सामने नृत्य करने वाली राधा जब भी मोहन अपनी मुरली की तान छेड़ता राधा अपनी सुध बुध खो बैठती उसके पैर अपने आप ताल से ताल मिलाने लगते उनकी इस अनुपम जुगलबंदी के साक्षी स्वयं द्वारकाधीश होते |
दोनों की ये जुगलबंदी कब प्रेम में परिणीत हो गयी पता ही ना चला | मोहन ने हिम्मत करके राधा के सामने अपना प्रेम प्रस्ताव भी रख दिया लेकिन राधा चाह कर भी वो मोहन के निवेदन को स्वीकार नहीं कर पायी करती भी तो कैसे आखिर वो एक देवदासी जो थी उसका मन तो द्वारकाधीश को समर्पित था मगर तन.. तन तो मंदिर के महंत से लेकर वहाँ काम करने वाले हर कर्मचारी की जागीर था जिसे वो जब चाहे अपनी वासना को मिटाने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे | पीढ़ियों से उसके परिवार में यही परम्परा चली आ रही है |
तभी तो देवदासियों की माँ तो होती है लेकिन पिता.. पिता सबके द्वारकाधीश ही होते है | वो चाह कर भी मोहन के प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती थी |क्यूंकि अठारह साल की होते ही उसे भी तो यही सब झेलना था और कुछ ही दिन तो बचे थे उसके अठारह साल की होने में |
उसने मोहन के निवेदन को अस्वीकार कर दिया लेकिन मोहन के कारण पूछने पर वो फूट फुट कर रो पड़ी उसने मोहन को सब बताया अब मोहन को समझ आ रहा था कि मंदिर के पीछे बनी उस कोठरी से आने वाली चीखों का राज़ क्या है?
[बस उस मोहन ने राधा को उस नर्क से निकालने का निश्चय कर लिया | वो राधा को मंदिर से कहीं दूर ले जाने का मौका ढूंढने लगा लेकिन महंत जी के लठैतों के कारण उसे कोई मौका नहीं मिला | आखिर वो दिन आ ही गया जब राधा अठारह साल की हो गयी थी वो दिन राधाअष्ट्मी का दिन था पूरा मंदिर राधा रानी की आरती से गूँज रहा था हर कोई राधा रानी के प्राकट्य उत्सव को बड़ी धूम धाम से मना रहा था लेकिन मोहन और राधा दोनों की नज़रे तो बस एक मौक़े को तलाश रहीं थी आखिर उन्हें वो मौका मिल ही गया शयन आरती के बाद जब सब लोग आपने घर जा चुके थे | महंत जी का बुलावा आया वो राधा को अपनी सेवा में उपस्थित चाहते थे |
राधा और मोहन ने देखा सब अपने अपने कामों में व्यस्त थे और महंत जी के लठैत बतियाने में लगे थे दोनों अंधेरे का फायदा उठा दबे पाँव मंदिर के पिछवाड़े के रास्ते से भागने लगे तभी अचानक से महंत जी ने खिड़की से उन्हें भागते हुए देख लिया | उन्होंने जोरदार आवाज लगाई | मोहन और राधा डर के भागे वो लगातार सहमी हुई जुबान से द्वारकाधीश को याद कर रहे थे | लठैत राधा और मोहन की तरफ दौड़ पड़े मोहन जड़ सा हो गया | राधा लगातार द्वारकाधीश से अपनी और मोहन की रक्षा की प्रार्थना किये जा रही रही | महंत जी भी बाहर आ गए | जैसे ही लठैत उन पर हमला करते हवा के एक तेज़ झोंका आया और निज मंदिर के कपाट खुल गए तभी द्वारकाधीश के नेत्रों के एक तीव्र सा प्रकाश पुँज निकला और राधा और मोहन को छोड़ सबकी आँखों के आगे अंधेरा चल गया सब घबरा उठे राधा और मोहन तुरंत मंदिर से बाहर की तरफ भागे जैसे ही उन दोनों ने मंदिर के बाहर कदम रखा एक भूकंप सा आया धरती डोलने लगी और पूरा का मंदिर महंत जी और उनके आदमियों सहित धरती में समा गया | ये द्वारकाधीश की कृपा ही थी की राधा और मोहन का बाल भी बांका नहीं हुआ | अचानक हुई इस घटना से हर कोई हैरान था | राधा और मोहन ने द्वारकाधीश को प्रणाम किया और चल पड़े प्रेम का एक नया अध्याय लिखने के लिए जहाँ राधा और मोहन का मिलन होने जा रहा था हमेशा के लिए....
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Ultimate story line
बहुत सुंदर कहानी है।❣️❣️❤️❤️
Bahut pyari prem kahani bhagwan aise hi apne bhakton ki raksha krte hn❤️🙌
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