प्रकाश और मेह का एक अंतर सामंजस्य मुझे सदैव मेरे आत्मन प्रवित्ति तक की यात्रा का संदेश देता आया है.. एक रवि जिनका धर्म है तप, एक है बौछार जो पिघलते हुए उपवनों का कारण बनी बैठी है, परंतु जिसका मूल दिनकर की तपिश है.. मैंने इस अंतर संबंध से नीति का साक्षात्कार किया है। क्या मालूम की किसी उपनिषद में ऐसी परिभाषा गढ़ी होगी भी या नही., किंतु स्व की यात्रा में परिभाषाओं का शास्त्रों से होना आवश्यक भी तो नही.. प्रण धारी इंद्र का वो तीक्ष्ण धुन भी बहुत मधुर है, मैंने अपने पापों का धूल जाना .,बिना सदानीरा की कृपा किये, वहाँ अनुभव किया है। चक्षु कारण हमें दृष्टि भी दे और सृष्टि भी..
आदिरमानी✍️💫
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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
nice
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