तप

ये कृति मेरी वर्षा के मूल तप की चर्चा करती है, मेरी सामान्य साहित्यिक बोध से पिरोहे है मैंने इस रचना में ये शब्द, और ये अर्पण करता हूँ मैं, मेरे इष्ट - सूर्य को।✍️

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Aadiramani
Aadiramani 10 Jul, 2022 | 0 mins read

तप का आभाव जीवन में है

ये क्या स्वभाव जीवन में है..?

विषम वेदना क्या सहते हो

जग संवेदना में देहते हो

अग्निसिखा को जिसने देखा

जाना मानव धर्म का लेखा

मद मस्त हुए चलते रहते

हर मार्ग प्रशसत किये रहते

परंतु मूल क्षण छुट गया

वो मटका तप का फुट गया

री रागिनी कहाँ चल दी.?

देह त्यागिनी कहाँ चल दी?

किस दिशा वीरत्व लिए

तेज कपाल पर, और व्रत लिए

कहाँ गया वो अति ध्यानी

शून्य वेग का स्वाभिमानी

अब जीवन केवल मद भाव लिए

सब ही दिशा में आभाव लिए

इंद्र रहित रस क्या होता है

बिन तप तेजस क्या होता है

जा जा के हुंकार लगा

ज्वाला जला, संहार रचा

मनुज भाग्य अब फूटे हैं

अब तप मार्ग से छूटे हैं

ये प्रसंग तनिक रहे निकट

तुम भी जटिल मैं भी विकट

हे तपस्वियों स्वीकार करो प्रणाम मेरा

ये ज्वालित सिद्धि सम्मान मेरा

आदिरमानी✍️

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