जिंदा मे मरा मरे मे जिंदा नही

आधुनिकता को निशाना बनाना

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Aadarsh Upadhyay
Aadarsh Upadhyay 13 Feb, 2020 | 1 min read

तुम कौन हो? मुझे पता नही

इसान हो इंसानियत लापता सही

ढूढने जाओ खुद को जो आज मे

बीते कल का निशा

तो आने वाले कल की दिशा नही

सब ने सब पा लिया खोने को बचा नही

धरती हो या आसमा जहा तेरी पहुँच कही

क्षणिक सुख टिकाऊ दुख बदलने मे

तेरे आराम का काम

काम तो है फिर तू उसके काम का नही

था कुछ जहा मे लिया बहुत दिया कुछ नही

मिट्टी हो या हवा वहा तेरी जहरीले धूल बही

बनाया था घर बस्ती की गुजर बसर मे

तेरे सफर का शहर

नजारा नजर देखने जाये तो सांसे चले नही

जो खुदा ने दिया किया ऐसा कि लायक नही

मजहब हो या करम फायदे मुताबिक रही

जिस्म की ताजपोशी की कश्मकश मे

आदमी का जमीर

'आदर्श 'जिंदा मे मरा मरे मे जिंदा नही

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Aadarsh Upadhyay

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