परिश्रम का चूल्हा,
एक-एक घर जलता,
हर रोज किसान है,
आत्महत्या करता।।
दो समय की रोटी,
भूखा न रखता कभी,
श्रम करता रात-दिन,
स्वेद छोड़ता हर पल।।
परिश्रम से अपने वह,
खेत को भिगोता,
हर रोज किसान है,
आत्महत्या करता।।
अन्नदाता है जो,
भगवान का रूप ,
कर्ज मे है जीवन,
संवरे दूसरे का जीवन।।
खुद कुर्बान करता,
अपना वह जीवन,
अन्न हो खेतो मे,
प्रयास करता हर पल।।
हर रोज किसान है,
आत्महत्या करता।।
-उदित जैन
(Delhi)
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