चले तो थे,माँ पापा का हाथ पकड़कर,
पर वह दोस्त भी बड़े हसीन थे।।
वो 2 किलोमीटर पैदल चलना मानो,
कुछ मिनटो का नही जन्मो का सफर था।।
क्लास मे की गई मस्ती जैसे ,
अपनो को करीब ला देती थी,
दुशमन जब हाथ लगाये,
तब उसकी शामत आ जाती थी।।
सर और मैडम के नये-नये नाम रखना,
कभी उसका तो कभी उसका टिफिन खाना,
क्लास मे शोर मचा कर टीचर को परेशान करना,
अलग-अलग आवाज निकलकर दूसरो का नाम लगाना।।
क्लास मे टीचर ना होने पर घर को चले जाना,
पढाई के लिए सबके घर पर चले जाना ,
दोस्त के नम्बर ज्यादा आने पर उसके साथ छेड़छाड़ करना ,
पार्टी करने के नये नये बहाने ढूँढ़ना।।
बहुत याद आते है आज ये स्कूल वाले दिन।।
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