दुनिया छोड़ जगत से चला,
प्रेम की आस मे हर ओर,
एक जीव की निर्मम हत्या से, मची है त्राहि सब ओर।।
असभ्य कहते जानवर को,
जब वह इंसान को मारता है,
कहाँ जाती है मानवता जब, इंसान जीव को तड़पाता है।।
हर जीव को जीने का हक है, प्रकृति ने भी खूब सबका साथ दिया है,
पर जाने किस घमंड मे है मानव, जो अब खुद को खुदा समझ रहा है।।
जो बिन कारण किसी को कुछ नहीं कहता,
मस्त रहता है जो अपने काम मे,
फिर अपनी स्वाद जीभ के कारण,
चलकर करते हो घर घर कत्लेआम।।
मुझको आशा जन नायको से है, कुछ ऐसे कड़े नियम बना दो,
आज मूक पशुओ की करे जो हत्या,
उन्हें अभी से फांसी पर लटका दो।।
बस आखिर में कहना चाहता हूँ, संम्भल कर चल ऐ मूर्ख इंसान तू,
कोरोना भी एक जीव ही है, जिसने सबको पहुँचा दिया श्मशान रे।।
-उदित जैन
(Delhi)
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