रोते रोते पलको के नीचे सपने छुपाता रहा,
ख़्वाबो से दूर होकर अपने को भुलाता रहा।।
हसरत थी कुछ करने की अपने देश के लिए,
घर की चार दीवारी मे रहकर उसे दबाता रहा।।
शोक तीन स्टंप,बैट,बॉल संग खेलने का रहा,
आज उन्हे बैग मे पैक करके बस देखता रहा।।
स्कूल मे सपनो की किताब जो संजोई थी,
आज सब खत्म कर पन्नो का जलाता रहा।।
दोस्तो की आवाज गूंजती है आज भी कानो में,
अब सपनो को पलटते देख दिल समझाता रहा।।
जीत के बाद की महफिल मे खाये समोसे,
आज पेन और पेपर की भाग दौड़ मे जलाता रहा।।
समझौता कर लिया सपनो से अब अपने मैने,
वह पल याद कर दिल नही महकता रहा।।
-उदित जैन
@imuditjain
@_uduaash_ink_
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