बंजर सी जमीन थी,
मिट्टी जो निकली तो ईट बनी थी।।
सबके घर की जब नींव धरी थी,
पत्थर से घर को मकान बनाया,
तब घर की वो दीवार बनी थी।
रेत और सीमेंट से मजबूती मिली,
पानी से सिचांई कर कठोर बनी थी,
लकड़ी के फट्टो पर फिर एक छत बनी थी।
मकान मे रहकर हमने घर बनाया,
परिवार को जोड़ एक समाज बनाया,
समाज मे रहकर फिर एक बड़ा समराज्य बनाया।
लेखको को एक बड़ा मुकाम दिया,
सबको अपनी बात कहने का मार्ग दिखाया,
पेपरविफ पर अपनी कविताओ से,
सबने अपने आप को बताया।।
-उदित जैन
(Delhi)
Comments
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Very nice
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