शरीर है यह मिट्टी का,
धन दौलत सब खेल है।।
मौत आती है जब हे मानव,
रोकने से भी रूकती यह ना।।
जीव तू छोटा सा है इस संसार मे,
बहुत बड़े अरमान हो गये तेरे।।
मिट्टी जैसी काया तेरी है पर,
सोने जैसे घर और मकान है तेरे।।
यह मिट्टी की काया तेरी अब,
जब मिट्टी मे यहाँ मिल जायेगी।।
दुनिया हसीं एक मेला है यह,
अपने को यहाँ तू पहचान मानव।।
अंत समय मे सबको पुकरता रहा,
तुझे रोकने वाला पर तेरे साथ न खड़ा।।
मौत अकेली आकर तुझे ले जायेगी,
तेरी यह धन और दौलत यही रह जायेगी।।
-उदित जैन
(Delhi)
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