इंसानियत डूब गई...

इंसान शर्मसार हो गया,अपने जैसे बहुतो को खो गया।।

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udit jain
udit jain 04 Jun, 2020 | 1 min read
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पेट भरने की अभिलाषा मे,

अन्वेषण पथो पर किया,

मानव को अपना समझ वह,

समीप उसके है आई।।


भोजन अपने लिए होता तो,

धैर्य बना भी लेती वह,

बात यहाँ शिशु पर आई तो,

मानव से भी आशा बंधी।।


इंसान की इंसानियत हुई है आज,

शर्मसार बहुत ज्यादा यहाँ पर,

इंसानो को धोखा देते-देते अब,

जानवरो का है अब शिकार करते।।


फल मे मिलाकर बम उसने आज,

जो नही आया अभी तक दुनिया मे,

उस शिशु का नाश कर दिया,

माँ को भी उसकी हत्या का पाप लग गया।।


तड़प-तड़प दम तोड़ गई वह माँ,

बच्चे को भी इस दुनिया से ले गई,

माँ ने मरते मरते भी बचाने की खतिर कोशिश हजारो की,

जल मे मिलकर भी वह उसकी जान न बचा पाई।।


इंसान की इंसानियत को देख आज,

शर्मसार पूरा संसार हुआ है,

इंसान-इंसान का दुश्मन था पहले पर,

आज जानवर को मार खुद को भी कलंकित किया है।।


-उदित जैन 

(Delhi)

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udit jain

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