हूँ नही मै वो जो दिख रहा,
नजर से सबकी मै दूर ही रहा,
कहाँ से आया मैने नही जाना,
चेतन को बस तन मे समाया।।
छूटा जो अब मेरा नही वह,
बंधन से छुटकरा अब पाया,
मेरे भी थे सपने सबकी तरह,
रही नही अब उनकी जरूरत।।
अपने का मुझको पता अब मिला,
तब से ही मै बहुत सुख पा रहा,
मुश्किल डगर भी आसान लगती,
समझकर खुद छुटकरा पा रहा।।
मेरा लक्ष्य मेरे सामने है,
पाया नही जो वह अब पा रहा,
एहसास कैसा यह हो रहा है,
जो केवल मुझे समझ आ रहा है।।
दूर है जो वह दूर ही रहेगा,
अपने को मै अपने मे पा रहा,
लोग आते-जाते रहेंगे यहाँ सदा,
मै जिया कैसे पूछेंगे सर्वदा,
मृत्यु उत्सव मनाओ तुम हमेशा।।
न मर रहा मै इस बार यहाँ,
जग से जाकर अब मुक्ति पा रहा,
हूँ नही मै वो जो दिख रहा,
नजर से सबकी मे दूर रहा।।
-उदित जैन
@Imuditjain
@_uduaash_ink_
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह
शुक्रिया भैया 🙏🙏🙏
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