मेरे गुरू

गुरू जैसा कोई साथी नही

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udit jain
udit jain 05 Jul, 2020 | 1 min read
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गुरू ने कहाँ ठहरना ना वहाँ जहाँ कषाय,

मौन रहकर सिखाया आंनद का पाठ,

निस्पृही मन गुरू का धन आत्म रमण,

गुरू सा मित्र वृक्ष की छाया सम धर्म का फल,

मिला जो गुरू सा महावैघ यहाँ निरोगी काया,

मार्ग रोशनी गुरू सूरज सम फूल खिले,

गुरू अंगुली थाम चलूँ मेरे नन्हे कदम,

गुरू समागम सागर मे कश्ती जैसे भव पार,

बहिर्मूखी हूँ अंकिचन कैसे हूँ गुरू सहाय,

गुरू पुष्कर जैसे अमृत भरा पिपासु बनूँ,

विपरीतता परीक्षा साधक की गुरू समेरूपर्वत,

गुरू को वचन मील के पत्थर जैसे मार्ग दर्शन,

देखूँ गुरू की ऋजुता को वक्रता मिटे मेरी,

अशीष गुरू का ह्रदय कमल पर भानु किरणे,

वंचित रहा गुरू चरण जब मै विफल रहा,

जौहरी सम मेरे गुरू की दृष्टि हीरा बन जा,

मोक्ष शैल पर ब्रह्मचर्य चूलिका गुरू विजेता।।


#गुरू_पूर्णिमा_की_सभी_को _बहुत_बहुत_बधाई।।


-उदित जैन

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